MUST READ : पूरे विश्व में एक मात्र यहां है परमारकालीन नवदुर्गा मंदिर, आप भी करें दर्शन प्रसिद्ध ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने कहा कि धर्मशास्त्रों में शरद पूर्णिमा को कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इस दिन श्री कृष्ण को कार्तिक स्नाप करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण रासलीला करते थे। इसी वजह से वृदांवन में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को रासोत्सव और कामुदी महोत्सव भी कहा जाता है।
MUST READ : #NAVRATRI : धन की कमी तो नवरात्रि में ऐसे करें पूजा गीता में है इसके बारे में उल्लेख पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक:।।’ प्रसिद्ध ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि श्लोक का अथ है कि रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं। (गीता:15.13) वैज्ञानिक भी मानते हैं की शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है। शरद पुर्णिमा की रात चन्द्रमा की किरणों में खास तरह के लवण व विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो उनकी गुणवत्ता में बढ़ौतरी हो जाती है।
MUST READ : LIVE VIDEO नवरात्रि : सिर पर कलश, कलश पर दीपक, फिर शुरू हुई मां की आराधना अनुष्ठान का मिलता है बड़ा फल ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हिन्दू पंचांग के आनुसार शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी पूर्णिमा से ज्यादा है क्योंकि आशिवन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शास्त्रों में इस पूर्णिमा का महत्व बताया गया है। कहा जाता है की धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस लिए इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। शरद पूर्णिमा के विषय में विख्यात है, कि इस दिन कोई व्यक्ति किसी अनुष्ठान को करे, तो उसका अनुष्ठान अवश्य सफल होता है। तीसरे पहर इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उतम फल मिलते है। इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन सुबह काल में खाने का विधि-विधान है।
MUST READ : पीएम मोदी भी मानते है इस मंदिर की महिमा, आप भी करें LIVE दर्शन भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था प्रसिद्ध ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। तब मां लक्ष्मी के रूप में धरातल में अवतरित हुई थी। कहा जाता है की शरद पूर्णिमा की रात भगवन श्री कृष्ण ने बंशी बजाकर गोपियों को अपने पास बुलाय था, और उनसे रास रचाई थी। इसलिए इसे रास पूर्णिमा या कामुदी महोत्सव भी कहा जाता है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात्री का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कुमारी कन्याएं सुबह स्नान करके पूर्ण विधि विधान से भगवान सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। जिससे उन्हें योग्य एवं मनचाहा पति प्राप्त हो। धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि मां लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है। इसलिए हर पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से कुंडली में धन का प्रबल योग बनता है। लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने का और भी विशेष महत्व है।
MUST READ : VIDEO 9 रात, 9 देवी, 9 कहानी, यहां पढे़ं हर देवी की रोचक कहानी जानिए वर्ष 2019 में शरद पूर्णिमा दिन और समय 13 अक्टूबर 2019 (रविवार )
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा
उदय = 18 बजकर 03 मिनट मिनट 59 सेकण्ड पर।
चन्द्रास्त — नहीं हैं।
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा
उदय = 18 बजकर 03 मिनट मिनट 59 सेकण्ड पर।
चन्द्रास्त — नहीं हैं।
पूर्णिमा तिथि = 12 बजकर 36 मिनट पर 13 अक्टूबर 2019 को
पूर्णिमा की अंतिम तिथि 02:38 बजे तक, 14 अक्टूबर 2019 को MUST READ : शारदीय नवरात्रि 2019 : हाथी पर मां दुर्गा का आगमन, घोड़े पर होगी विदाई
पूर्णिमा की अंतिम तिथि 02:38 बजे तक, 14 अक्टूबर 2019 को MUST READ : शारदीय नवरात्रि 2019 : हाथी पर मां दुर्गा का आगमन, घोड़े पर होगी विदाई
शरद पूर्णिमा के दिन खीर सेवन का महत्व ज्योतिषी दयानंद शास्त्री के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा सोलह कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है इसलिए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद मानकर खाया जाता है। माना जाता है की इससे रोग मुक्ति होती है और उम्र लंबी होती है। निरोग तन के रूप में स्वास्थ्य का कभी न खत्म होने वाला धन दौलत से भरा भंडार मिलता है। शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूल क्वाथ, सौंठ, काली मिर्च, वासा, अर्जुन की छाल चूर्ण, तालिश पत्र चूर्ण, वंशलोचन, बड़ी इलायची पिप्पली इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकाएं और खीर बना लेंढ्ढ खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें। अब इस खीर को तांबे के साफ बर्तन में रात भर पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ दें। अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे प्रात:) सेवन कराएं। इस खीर को मधुमेह से पीडि़त रोगी भी ले सकते हैं। बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें।
MUST READ : भविष्यवाणी: नवरात्रि में भी शाम को झमाझम होगी बारिश IMAGE CREDIT: NET यह हैं शरद पूर्णिमा की कथा ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दु:ख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया- तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी। तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसके लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली- तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता। तब छोटी बहन बोली- यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है। इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।