शहर के सोने के आभूषणों की साख व चमक बीते 100-125 साल से बरकरार है। यहां के व्यापारी खरा सोना प्रामाणिकता के साथ बेचते थे। उस जमाने में रतलाम के कई कारोबारी व सुनार आभूषणों की शुद्धता की प्रामाणिकता के लिए अपनी दुकान की छाप लगाते थे। वर्तमान में सरकार ने हालमार्क लागू कर दिया है। इसके बाद भी रतलाम का सोना 92 प्रतिशत खरा बिक रहा है। जो हालमार्क की 91.6 प्रतिशत से चार टका अधिक है।
रतलाम के शुद्ध मावे की महक पूरे देश मेंसोना के साथ ही रतलाम के मावे की महक भी पूरे देश में फैली हुई है। इसके चलते यहां पर निर्मित मावा दिल्ली से लेकर मुंबई तक जा रहा है। इसके साथ ही इसकी सबसे ज्यादा मांग गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व मप्र में रहती है। यहां के मावे के भाव के आधार पर आसपास की छोटी मंडियों व ग्रामीण क्षेत्र में बनने वाले मावे के सौदे होते हैं।
रतलाम में मावे के कारोबारी में कारोबारियों की दूसरी से तीसरी पीढ़ी कार्य कर रही है। कारोबारियों ने नाम ही मावावाले के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं। प्रतिदिन एक से डेढ़ टन मावा की बिक्री होती है। यहां के मावे पर लोगों को इतना विश्वास है कि वे हलवाई को मावा बुक करने का कह देते हैं।क्वालिटी की पहचान में महारतयहां के मावा कारोबारियों को मावे की क्वालिटी की पहचान में महारत हासिल है। वे मावा लेकर आने वाले लोगों के मावे में अंगुली डाल कर पता कर लेते हैं कि मावे में कितनी चिकनाई है। उसके हिसाब से उसके भाव तय करते हैं।
इन गांवों से आता है मावा चांदनी चौक स्थित रतलाम मंडी में मावा जिले के कई गांवों से आता है। इसमें कलमोड़ा, तितरी, मथुरी,कनेरी , सेमलिया, कुआंझागर, सिमलावदा, पलवा, खेड़ा, बंदनी, बड़ी खरसौद, रुनिजा, बांगरोद, सातरुंडा, नामली, बरबोदना, नौगांवा, भाट पचलाना, नंदेसी, लुनेरा, बंबोरी, बड़ावदा, आदि स्थानों से आता है।
पशु पालन को बढ़ावा देना होगा रतलाम के मावा शुद्ध दूध से निर्मित हो रहा है। जो दूध इसमें उपयोग होता है। किसान उसका क्रीम भी नहीं निकालते है। इससे उसमें चिकनाई अच्छी रहती है। यही कारण है कि यहां के मावे की मांग विभिन्न महानगरों व राज्यों में रहती है। इस साख को भविष्य में कायम रखने के लिए हमें पशु पालन को बढ़ावा देना होगा।
अंकित जैन(मावावाला), अध्यक्ष, मावा व्यापारी एसोसिएशन, रतलाम।
कारोबारियों व सुनारों का अच्छा सामंजस्य रतलाम के सोने के आभूषण की शुद्धता की चमक पूरे देश में फैली हुई है। इसका मुख्य कारण यहां के कारोबारियों व सुनारों में अच्छा सामंजस्य है। पूर्वजों की इस साथ को कायम रखने के लिए वर्तमान पीढ़ी भी कटिबद्ध है। इसके कारण यह साख कायम है।
झमक भरगट, अध्यक्ष रतलाम सराफा एसोसिएशन, रतलाम।