रतलाम

जैन आचार्य ने कहा लॉकडाउन में यह करने से कोरोना वायरस का ग्राफ आएगा नीचे

जैन आचार्य विजयराज मसा का मानना है कोरोना संकट से जीतने के लिए हर व्यक्ति को अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा। इसके लिए यह जरूरी है कि देश व विश्व का हर मनुष्य अपने अंदर प्रेम व करूणा को बढ़ाए। जिस तरह अन्न के बिना पानी और पानी के बिना अन्न हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता, इसी प्रकार धर्म के बिना करूणा और करूणा के बिना धर्म का अस्तित्व नहीं रह सकता। करूणा ही निर्विवाद धर्म है।

रतलामApr 13, 2020 / 03:54 pm

Ashish Pathak

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रतलाम. जैन आचार्य विजयराज मसा का मानना है कोरोना संकट से जीतने के लिए हर व्यक्ति को अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा। इसके लिए यह जरूरी है कि देश व विश्व का हर मनुष्य अपने अंदर प्रेम व करूणा को बढ़ाए। जिस तरह अन्न के बिना पानी और पानी के बिना अन्न हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता, इसी प्रकार धर्म के बिना करूणा और करूणा के बिना धर्म का अस्तित्व नहीं रह सकता। करूणा ही निर्विवाद धर्म है। जिस धर्म में करूणा का स्थान नहीं, वह धर्म हो ही नहीं सकता। करूणा की उपस्थिति में धर्म, इमान, नैतिकता और मानवता सुरक्षित रहते है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब लॉकडाउन है तब करूणा ही कोरोना को हराने में सक्षम है। व्यक्ति में जितना करूणा भाव बढेगा, उतना कोरोना का ग्राफ नीचे गिरेगा।
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शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराज मसा ने धर्मानुरागियों को सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन से दरियादिल बनने का आव्हान करते हुए कहा कि दुखी को देखकर मन में दुख दूर करने की जो हलचल पैदा होती है, यही करूणा है। इस करूणा ने टूटते दिलों को जोडा है। रिश्तों में आई दूरियां भी कम की है। स्वार्थ का राहू जब-जब करूणा को ग्रसता है, तब-तब जीवन में अंधकार छा जाता है। करूणा दिल का उजाला है और उजले दिल का पैमाना है। दायरा दिल व्यक्ति ही करूणा से दरिया दिल बतने है। दरिया दिल व्यक्ति सक्रिय होकर मानवता का संरक्षण करते है। आज की परिस्थिति में मानव को बचाना और उसे कुशलक्षेम देना सबसे महत्वपूर्ण बन गया है।
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दूसरों के रक्षण का भाव रखें

आचार्य ने कहा कि स्व का रक्षण तो सभी करते है,लेकिन दूसरों के रक्षण का जो भाव रखते है, वे ही करूणावान होते है। दूसरों के रक्षण में स्व रक्षण का भाव निहित हैं, इसलिए हमे हमेशा दूसरों के रक्षण का कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का मानव समर्थ और सक्षम है, लेकिन स्वार्थ भावना के चलते दूसरो की उपेक्षा करता है। यह उपेक्षा ही उसके लिए खतरनाक साबित होती है। मानव यदि सबकी अपेक्षाएं पूरी करता रहे, तो उसकी कभी उपेक्षा नहीं होगी। दूसरों की उपेक्षा करना हिंसा है। हिंसा फिर प्रति हिंसा को जन्म देती है। संसार में इस हिंसा और प्रति हिंसा का दौर एकमात्र करूणा भावों से रूक सकता है। करूणा ही संवेदनशीलता के रूप में अभिव्यक्त होती है। संवेदनशील मानव स्नेहशील और सहनशील होता है और किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होता है।
जैन आचार्य ने कहा कोरोना संकट से उबरना है तो करना होगा यह काम

Curfew in morena : <a  href=
Corona virus two positive cases ” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2020/04/03/corona_6_5997176-m.jpg”>तो हो जाएगी संसार में अराजकता
आचार्य ने बताया कि आंतरिक अहिंसा की प्रस्तुति करूणा में होती है, जो मानव-मानव को जोडने का काम करती है। करूणा ने कभी किसी को तोडा नहीं, वह सदैव जोडती है। मानव मन की करूणा यदि सूख जाए, तो सारे संसार में अराजकता पैदा हो जाती है। करूणा की मंदाकिनी जिसके जीवन में बहती है, वह सदैव सरसब्ज रहता है। उसके जीवन की हरियाली कभी सूखती नहीं है। करूणा आत्मा का स्वभाव है। क्रूरता आत्मा का विभाव है। कोई भी विभाव ज्यादा देर ठहर नहीं सकता, उसे अपने स्वभाव में आना ही पडता है। करूणा की सक्रियता में मानवता फलती-फूलती है। करूणा के अभाव में मानव-दानव और नर-किन्नर बन जाता है। करूणा ही मानव को महामानव बनाती है।
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जैन संत ने कहा कोरोना वायरस को रोकने करना होगा यह काम

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