यह बात जैन आचार्य विजयराज ने रविवार को कही। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित संदेश में कहा कि धर्म और धर्मान्धता में अंतर है। मैं ही सच्चा और अच्छा हूं बाकि सब झूठे और बुरे है, यह धर्मान्धता है,क्योंकि धर्म कभी किसी को झूठा या बुरा नहीं कहता है। धर्मान्धता कटुता, कटटरता और कलुषितता पैदा करने वाला अधर्म है। धर्म जब धर्मान्धता से संयुक्त होता है, तो अधर्म से अधिक खतरनाक हो जाता है। धर्मान्धता ने ही सारे बैर, विवाद, विरोध और विद्वेष पैदा किए है। कोरोना के इस संकटकाल में हर व्यक्ति को धर्म का मर्म समझने की चेष्टा करना चाहिए, ताकि संकट से जल्द से जल्द छुटकारा मिल सके।
पाखंडियों ने धर्म को बदनाम किया
आचार्य ने कहा कि धर्म कैंची नहीं है और कैंची का काम भी नहीं करता। वह सुई की तरह दो फटे दिलों को जोडता हैं। धर्म एक अखंड चेतना है, जब वह खंड-खंड होती है,तो उससे पाखंड पैदा होता है। धर्म और पाखंड का कोई मेल नहीं है। पाखंडियों ने धर्म को जितना बदनाम किया है, उतना अधर्मियों ने नहीं किया। धर्म व्यक्ति के अंतकरण में है, पर उसका प्रतिबिम्ब व्यक्ति के व्यवहार पर पडता हैं। व्यवहार जब तक समता मूलक नहीं होता, तब तक धर्म का जीवन में अवतरण होना नहीं कहा जा सकता। समता धर्म है और विषमता अधर्म है। सहिष्णुता, विवेक और धेर्य सभी धर्म के व्यवहार है। इन्हीं से किसी व्यक्ति के धार्मिक होने की पहचान होती है। अपने जीवन में जो भी इन तीन सूत्रों को अपना लेता है, उसे धार्मिक होने से कोई रोक नहीं सकता।
आचार्य ने कहा कि धर्म कैंची नहीं है और कैंची का काम भी नहीं करता। वह सुई की तरह दो फटे दिलों को जोडता हैं। धर्म एक अखंड चेतना है, जब वह खंड-खंड होती है,तो उससे पाखंड पैदा होता है। धर्म और पाखंड का कोई मेल नहीं है। पाखंडियों ने धर्म को जितना बदनाम किया है, उतना अधर्मियों ने नहीं किया। धर्म व्यक्ति के अंतकरण में है, पर उसका प्रतिबिम्ब व्यक्ति के व्यवहार पर पडता हैं। व्यवहार जब तक समता मूलक नहीं होता, तब तक धर्म का जीवन में अवतरण होना नहीं कहा जा सकता। समता धर्म है और विषमता अधर्म है। सहिष्णुता, विवेक और धेर्य सभी धर्म के व्यवहार है। इन्हीं से किसी व्यक्ति के धार्मिक होने की पहचान होती है। अपने जीवन में जो भी इन तीन सूत्रों को अपना लेता है, उसे धार्मिक होने से कोई रोक नहीं सकता।