रतलाम

कोरोना से बचाव करता है जैन आचरण

महासतीश्री वैभवश्रीजी मसा का कहना है कि शारीरिक रूप से जैन आचरण कर कोरोना वायरस के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान में लॉक डाउन सहित बहुत सारे नियम जैन संतों जैसे ही है। जैन संत जिस प्रकार सामाजिक दूरी का पालन करते है। दूसरों के पदार्थ को छूते नहीं है। धातु को प्रयोग में नहीं लाते है। मांसाहार के सर्वथा और सर्वदा त्यागी होते है। उसी प्रकार वर्तमान समय में किसी दूसरे के पदार्थ को छूना नहीं है।

रतलामApr 22, 2020 / 09:41 am

Ashish Pathak

Tamilnadu records first COVID-19 doctor death

रतलाम.
शहर के सिलावटों का वास स्थित गौतम भवन में विराजित तरूण तपस्विनी, परम विदुषी महासतीश्री वैभवश्रीजी मसा का कहना है कि शारीरिक रूप से जैन आचरण कर कोरोना वायरस के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान में लॉक डाउन सहित बहुत सारे नियम जैन संतों जैसे ही है। जैन संत जिस प्रकार सामाजिक दूरी का पालन करते है। दूसरों के पदार्थ को छूते नहीं है। धातु को प्रयोग में नहीं लाते है। मांसाहार के सर्वथा और सर्वदा त्यागी होते है। उसी प्रकार वर्तमान समय में किसी दूसरे के पदार्थ को छूना नहीं है। धातुओं से दूर रहना है। मांसाहार से बचना है और जैसे जैन संत कच्चा पानी, कच्ची वनस्पति को छूते नहीं है, वैसे ही गर्म पानी के प्रयोग और कच्ची वनस्पति नहीं खाने के विधान का पालन करना जरूरी है।
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महासतीजी ने कहा कि सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय होता है। इसलिए उसे बचाए रखने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनो प्रकार की सावधानियों पर ध्यान देना चाहिए। मानसिक सावधानियां धर्म सिखाता है। इसलिए जीवन में सत्संग अनिवार्य हैं। सत्संग में गुरूजनों धर्म पालन की सारी जानकारियां प्राप्त होती है। धर्म से ओतप्रोत रहने वाला मानसिक आघातों से अपने आप को बचा सकता हैं। इन सावधानियों के साथ-साथ दिन भर कोरोना वायरस की चर्चा करने से भी बचे। क्योंकि बार-बार,सुन-सुन कर ब्लड प्रेशर घट-बढ सकता है। घबराहट से कई प्रकार की बिमारियों का प्रवेश होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिए अधिक से अधिक धार्मिक महामंत्र का जाप करना चाहिए। इससे ही मन और शरीर दोनो स्वस्थ रहेंगे।
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समस्या की पीठ पर ही सवार होता है समाधान

इधर आचार्यप्रवर 1008 विजयराज मसा ने कहा कि संतुलित दिमाग जैसी सादगी नहीं, संतोष जैसा सुख नहीं, लोभ जैसा रोग नहीं और दया जैसा पुण्य-धर्म नहीं। कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति को इन चार सूत्रों पर आचरण करे। यद्धपि इस संकट काल में दिमाग बहुत जल्दी अशांत, असंतुलित, उत्तप्त और उत्तेजित हो जाता है, मगर इससे कोई फायदा नहीं है। समस्या आई है, तो उसका समाधान भी मिलेगा। यह कभी नहीं भूले कि समस्या की पीठ पर ही समाधान सवार होता है।
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