रतलाम

पूजन में भूलकर नहीं करें ये काम, न तो हो जाओगे बर्बाद

पूजन के नियम का पालन नहीं करने के बाद भक्त कहते है कि पूजन का फल नहीं मिलता। इसलिए ये जरूरी है कि पूजन के दौरान इसके बनाए हुए नियम का पालन अनिवार्य रुप से किया जाए।

रतलामJul 04, 2019 / 11:08 am

Ashish Pathak

Do not forget this in the worship, this work will not be ruined

रतलाम। हिंदू धर्म में पूजन का बड़ा महत्व है। पूजन के दौरान अनेक नियम का ध्यान रखना जरूरी है। कई बार पूजन के नियम का पालन नहीं करने के बाद भक्त कहते है कि पूजन का फल नहीं मिलता। इसलिए ये जरूरी है कि पूजन के दौरान इसके बनाए हुए नियम का पालन अनिवार्य रुप से किया जाए। हनुमान जी, दुर्गा मां, शिवजी सभी की पूजन के अलग-अलग नियम है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कही। वे भक्तों को पूजन के नियम के बारे में बता रहे थे।
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ज्योतिषी जोशी ने कहा कि हनुमान जी, दुर्गा मां, शिवजी सभी की पूजन के अलग-अलग नियम है। इसलिए जब भी पूजन की जाए, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि जिस तरह के देवता हो, उनके द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन किया जाए। अन्यथा, देवता को जो नहीं पसंद हो, वो करने से पूजन का लाभ नहीं मिलता है।
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इन बात का जरूर हो पालन

– पूजन में एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।
– पूजन के बाद सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

– बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।
– पूजन में जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

– पूजन अगर किसी उद्देश्य के लिए है तो जप करते समय दाहिने हाथ को कपडे़ या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।
– जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

– संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोडऩा मना है।

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शनिवार को पीपल पर जल

– पूजन में दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

– पूजन के दौरान होने वाले यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।
– पूजन के बाद आने वाले शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। इससे पूर्वज प्रसन्न होते है।


– पूजन के लिए बने भोजन व प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।
– पूजन में प्रतिष्ठित हर देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

– पूजन के बाद कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

– एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म नहीं बनाना चाहिए ।
– बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

– शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।
– शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय अन्य दिनों में कुुंकुम नहीं लगाया जाता है।

– पूजन में शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवान को तगर के फूल नहीं चढ़ावे।
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अक्षत देवताओं को तीन बार

– पूजन में अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावें।
– पूजन के लिए नए बिल्वपत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

– पूजन में विष्णु भगवान को चावल, गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ाए।
– पूजन में पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

– पूजन में बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शिवजी को चढ़ता है।

– पूजन में पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें
– पूजन में गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

– पूजन में पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

– पूजन में दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।
– पूजन में सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

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– पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

– पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

– पूजन में घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।
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