कुसुमकांत जैन की बहन थी सुमन
थांदला के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुसुमकांत जैन की सुमन जैन बहन थी। 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ। इस संविधान को तैयार और लागू करने के लिए भारतीय संविधान समिति बनाई गई थी, उसमें सबसे युवा सदस्य थांदला के कुसुमकांत थे, बाद में राजनीति में आए और सेन्ट्रल में मिनिस्टर रहे।
इस तरह मिला रतलाम का टिकट
स्कूली शिक्षा से ही सुमन जैन स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी थी, राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में अध्ययन के दौरान महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हुई और एक वर्ष तक विभिन्न आंदोलन में सक्रिय रही। इसके लिए स्कूली पढ़ाई से भी एक वर्ष तक दूरी बना ली। महात्मा गांधी के साथ कई आंदोलनों में भी भाग लिया। बाद में पुन: वनस्थली लौटी। यहां से उच्च अध्ययन के लिए लंदन चली गई। जब सुमन केन्द्र सरकार के समाज कल्याण विभाग में अधिकारी थी, तभी वर्ष 1957 का चुनाव आ गया। गांधी के साथ आंदोलन करने और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के चलते कांग्रेस ने सुमन जैन को रतलाम से टिकट दिया।
वर्ष 1957 के चुनाव में रतलाम विधानसभा क्षेत्र में 55003 मतदाताओं में से 25407 ने मत का उपयोग किया, इसमें आधे से भी ज्यादा 14006 मत सुमन जैन को मिले, जबकि एक अन्य निर्दलीय महिला प्रत्याशी भूरीबाई को 374 मत मिले। निकटतम प्रतिद्वंद्वी कम्युनिष्ट पार्टी इंडिया के बदरीलाल ने 7713 मत प्राप्त किए। इस तरह 6293 मतों से सुमन जैन विजयी रही।
रतलाम के बाद यूं रही जिंदगी
रतलाम के बाद सुमन जैन इंदौर शिफ्ट हो गई। इनकी इकलौती पुत्री ऋषभ गांधी के अनुसार मां सुमन जैन ने स्वतंत्रता सेनानी को मिलने वाले लाभ भी नहीं लिए और एक मिसाल कायम की। बाद में मध्यप्रदेश खादी ग्रामोद्योग आयोग की अध्यक्ष रही। रेलवे बोर्ड में भी इन्हें सदस्य मनोनीत किया गया। लम्बे समय तक सक्रिय राजनीति से दूर रही लेकिन कई बड़े नेता इनसे राय-मशविरा लेने आवास आते थे। ओशो रजनीश, राममनोहर लोहिया भी कॉलेज में सहपाठी रहे। इंदौर आवास के दौरान सुमन जैन गुना, देवास और इंदौर विधानसभा चुनाव के दौरान कई मर्तबा जिला प्रभारी रही।