MUST READ : दिवाली पूजा का बेस्ट मुहूर्त यहां पढे़ं ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि गौरीनंदन श्री गणेश जी विघ्न विनाशक हैं। इनका जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। ये शिव और पार्वती के द्वितीय पुत्र हैं। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त मोहक व मंगलदायक है। वे एकदंत और चतुर्भुज हैं। अपने चारों हाथों में वे पाश, अंकुश, मोदक तथा वरमुद्रा धारण किए हुए हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीताम्बरधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें लाल रंग के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। वे प्रथम पूज्य, गणों के ईश अर्थात स्वामी, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।
MUST READ : महाबली रावण ने किए थे शरद पूर्णिमा के टोटके, आप भी करें मिलेगा लाभ घर में इस तरह होना चाहिए प्रतिमा ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है। इससे घर में सकारात्मक उर्जा रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।
MUST READ : भूलकर मत करना यह 7 काम, नाराज होती है महालक्ष्मी मुख्य दरवाजे पर होती शुभ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाईं तरफ घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नकारात्मक उर्जा हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रुक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती। वास्तु विज्ञान के अनुसार गणेश जी को घर के ब्रह्म स्थान (केंद्र) में, पूर्व दिशा में एवं ईशान में विराजमान करना शुभ एवं मंगलकारी होता है। इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो। गणेश जी को दक्षिण या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए।
MUST READ : VIDEO 42 ट्रेन में अस्थाई रूप से अतिरिक्त डिब्बे लगाए IMAGE CREDIT: net राइट व लेफ्ट में ये है अंतर ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है। दाई और की सूंड वाले सिद्धि विनायक कहलाते हैं तो बाई सूंड वाले वक्रतुंड हालांकि शास्त्रों में दोनों का पूजा विधान अलग-अलग बताया गया है। बाएं सूंड की प्रतिमा लेना ही शास्त्र सम्मत माना गया है। दाएं सूंड की प्रतिमा में नियम-कायदों का पालन करना होता है। प्रतिमा हमेशी बैठी हुई मुद्रा में ही लेनी चाहिए, क्योंकि खड़े हुए गणेश को चलायमान माना जाता है।
MUST READ : नवरात्रि, दिवाली, किसमस तक रेलवे चलाएगा 30 विशेष ट्रेन सूर्य चंद्र से जुड़ी है मान्यता ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की ओर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्त जब भी दक्षिण की ओर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है।
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ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखती है। जब सूंड दाईं ओर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। ऐसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है। वहीं बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। ऐसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।
ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखती है। जब सूंड दाईं ओर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। ऐसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है। वहीं बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। ऐसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।
MUST READ : VIDEO दो हजार के नोट की गड्डी, हीरा मोती पन्ना से होता है यहां महालक्ष्मी मंदिर श्रृंगार घर में हो इस तरह के गणपति ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं। यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। यह मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है। इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।
MUST READ : दिवाली 2019 की अमावस्या पर ऐसे करें पितृ दोष शांति IMAGE CREDIT: patrika इन बात का जरूर रखें ध्यान सूंड का रखें ख्याल : इसके अलावा जब आप अपने घर के लिए गणपति की मूर्ति खरीदें तो एक महत्वपूर्ण बात याद रखना आवश्यक है – गणपति की सूंड दाहिनी ओर न हो।
जब सूंड हो दाहिनी तरफ हो : दाहिनी ओर की सूंड वाले गणपति की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है तथा इनके लिए विशिष्ट पूजा की आवश्यकता होती है। आप इन आवश्यकताओं की पूर्ति घर पर नहीं कर सकते और यही कारण है कि इस प्रकार की गणपति की मूर्ति केवल मंदिरों में ही मिलती है। अत: घर में बाईं ओर की सूंड वाले, सीधी सूंड वाले या हवा में सूंड वाले गणपति की मूर्ति ही रखें।
सूंड प्रतिमा के बाएं हाथ : यदि सूंड प्रतिमा के बाएं हाथ की ओर घूमी हुर्ई हो तो यह विग्रह को वक्रतुंड कहा जाता है। इनकी पूजा-आराधना में बहुत ज्यादा नियम नहीं रहते हैं। सामान्य तरीके से हार-फूल, आरती, प्रसाद चढ़ाकर भगवान की आराधना की जा सकती है। पंडित या पुरोहित का मार्गदर्शन न भी हो तो कोई अड़चन नहीं रहती।
MSUT READ : करवा चौथ 2019 : पति से मिलेगा सम्मान, बस करें यह एक उपाय कहां करें विराजित गणेश जी को ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने बताया कि ने बताया कि वास्तु विज्ञान के अनुसार गणेश जी को घर के ब्रह्म स्थान (केंद्र) में, पूर्व दिशा में एवं ईशान में विराजमान करना शुभ एवं मंगलकारी होता है। इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो। गणेश जी को दक्षिण या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि घर में जहां भी गणेश जी को विराजमान कर रहे हों वहां कोई और गणेश जी की प्रतिमा नहीं हो। अगर आमने सामने गणेश जी प्रतिमा होगी तो यह मंगलकारी होने की बजाय आपके लिए नुकसानदेय हो जाएगी। शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए। मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा बैठकर ही होती है। खड़ी मूर्ति की पूजा भी खड़े होकर करनी पड़ती है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है। गणेश जी की पूजा भी बैठकर ही करनी चाहिए, जिससे व्यक्ति की बुद्धि स्थिर बनी रहती है।
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जो लोग संतान सुख की कामना रखते हैं उन्हें अपने घर में बाल गणेश की प्रतिमा या तस्वीर लानी चाहिए। नियमित इनकी पूजा से संतान के मामले में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होती है।
जो लोग संतान सुख की कामना रखते हैं उन्हें अपने घर में बाल गणेश की प्रतिमा या तस्वीर लानी चाहिए। नियमित इनकी पूजा से संतान के मामले में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होती है।
घर में आनंद उत्साह और उन्नति के लिए नृत्य मुद्रा वाली गणेश जी की प्रतिमा लानी चाहिए। इस प्रतिमा की पूजा से छात्रों और कला जगत से जुड़े लोगों को विशेष लाभ मिलता है। इससे घर में धन और आनंद की भी वृद्घि होती है।
गणेश जी आसान पर विराजमान हों या लेटे हुए मुद्रा में हों तो ऐसी प्रतिमा को घर में लाना शुभ होता है। इससे घर में सुख और आनंद का स्थायित्व बना रहता है। सिंदूरी रंग वाले गणेश को समृद्घि दायक माना गया है, इसलिए इनकी पूजा गृहस्थों एवं व्यवसायियों के लिए शुभ माना गया है।