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शहीदों के परिवार को आर्थिक तौर पर और मजबूत करने के लिए यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल फिरोज खान ने एक बड़ा जिम्मा उठाया है। 2006 बैच के कॉन्स्टेबल फिरोज वर्तमान में थाना अजीमनगर थाने की पुलिस चौकी खोद में तैनात है। पुलवामा हमले के बाद फिरोज खान ने अपने अधिकारियों से तीन दिन की परमीशन मांगी, जिसे पढ़कर एसपी थोड़ा हैरान हो गए। हलाकि बाद में कॉन्स्टेबल को एडिशनल एसपी अरुण कुमार ने परमीशन दे दी। परमीशन के बाद अब सिपाही ज़िले के अलग संस्थानों में जाकर अधिकारियों, कर्मचारियों से चंदा इकट्ठा कर रहा है। इस चंदे की रकम को वह इकट्ठा करके प्रधानमंत्री राहत कोष के माध्यम से शहीदों के परिजनों को आर्थिक मदद कराने की कोशिश कर रहे हैं।
शहीदों के परिवार को आर्थिक तौर पर और मजबूत करने के लिए यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल फिरोज खान ने एक बड़ा जिम्मा उठाया है। 2006 बैच के कॉन्स्टेबल फिरोज वर्तमान में थाना अजीमनगर थाने की पुलिस चौकी खोद में तैनात है। पुलवामा हमले के बाद फिरोज खान ने अपने अधिकारियों से तीन दिन की परमीशन मांगी, जिसे पढ़कर एसपी थोड़ा हैरान हो गए। हलाकि बाद में कॉन्स्टेबल को एडिशनल एसपी अरुण कुमार ने परमीशन दे दी। परमीशन के बाद अब सिपाही ज़िले के अलग संस्थानों में जाकर अधिकारियों, कर्मचारियों से चंदा इकट्ठा कर रहा है। इस चंदे की रकम को वह इकट्ठा करके प्रधानमंत्री राहत कोष के माध्यम से शहीदों के परिजनों को आर्थिक मदद कराने की कोशिश कर रहे हैं।
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फिरोज खान ने बताया कि अब तक यानी 24 घंटे में 30 हज़ार रुपये इकट्ठा कर लिये हैं और यह रकम थाने में जमा करा दी है। अभी इनके पास दो दिन बचे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा रुपये चंदा इकठ्ठा करके प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कराएं। फिरोज खान ने बताया कि हम यहां अपनी सेवा से रहें हैं जबकि वह हमारे देश की सीमा के बॉर्डर पर रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। ऐसे में हम सबका फ़र्ज़ बनता है की मैं उनके परिवार वालों को कुछ मदद करूं।
फिरोज खान ने बताया कि अब तक यानी 24 घंटे में 30 हज़ार रुपये इकट्ठा कर लिये हैं और यह रकम थाने में जमा करा दी है। अभी इनके पास दो दिन बचे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा रुपये चंदा इकठ्ठा करके प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कराएं। फिरोज खान ने बताया कि हम यहां अपनी सेवा से रहें हैं जबकि वह हमारे देश की सीमा के बॉर्डर पर रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। ऐसे में हम सबका फ़र्ज़ बनता है की मैं उनके परिवार वालों को कुछ मदद करूं।