महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता लोग ऐसे ही नहीं कहते थे, दरसअल उनकी कुछ बातें ऐसी है जिनका आज भी लोग पालन करते हैं। जैसे महात्मा गांधी का कहना था कि खुद वो बदलाव बनो, जो दुनिया में देखना चाहते हो।
हर साल 30 जनवरी को एक खास श्रद्धांजलि सभा उनकी याद में आयोजित की जाती है। इस दिन भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, रक्षामंत्री और तीनों सेनाओं के प्रमुख दिल्ली में गांधी जी की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
दिल्ली राजघाट में गांधी जी की समाधि है ये तो आप जानते हैं। और शायद आप वहां गए भी होंगे.. लेकिन क्या आपको पता है कि गांधीजी की समाधि यूपी के रामपुर में भी है। जब गांधी जी की हत्या हुई थी तब भले ही देश आजाद हो गया था लेकिन रामपुर में नवाबों का ही शासन था। दरअसल, रामपुर को देश की आजादी के दो साल बाद 30 जून 1949 को आजादी मिली थी।
उस समय रामपुर के शासक नवाब रजा अली खां थे। गांधी जी के नवाब से काफी अच्छे रिश्ते थे। इसलिए नवाब गांधी जी की अस्थियां रामपुर भी लाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कर्नल वशीर हुसैन जैदी और दरबारी पंडितों को दिल्ली भेजा था। हालांकि, दिल्ली में उन्हें अस्थियां देने से इंकार कर दिया गया। कहा गया कि एक मुसलमान को हिंदू की अस्थियां नहीं दी जा सकतीं।
अस्थियां ना मिलने पर रामपुर नवाब के पंडितों ने अपने तर्क कुछ इस तरह से रखे कि उन्हें अस्थियां दे दी गईं। आठ धातुओं से बने कलश में अस्थियां दिल्ली से रामपुर लाई गई। इसके बाद नवाब रजा अली खां ने कुछ अस्थियां कोसी नदी में विसर्जित कर दी और कुछ अस्थियां को चांदी के कलश में रखकर उनको दफन कर दिया। और उसके ऊपर गांधी जी की समाधि बना दी।
जब यूपी में अखिलेश यादव की सरकार बनी तब आजम खां नगर विकास मंत्री थे। और उन्होंने गांधी समाधि स्थल को भव्य बनवाया। करीब 22 करोड़ की लागत से गांधी समाधि स्थल बनवाया गया। इसके आसपास चार करोड़ की लागत से इंडिया गेट के दो खूबसूरत गेट बने हैं और हर साल गांधी जयंती के मौके पर कार्यक्रम भी होते हैं।