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एसटीएफ ने किया था घोटाले का पर्दाफाशकारतूस घोटाले का पर्दाफाश करने में एसटीएफ की लखनऊ टीम को सफलता मिली थी। इसके बाद 29 अप्रैल 2010 को एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपी पकड़े गए। पूछताछ हुई तो जांच में घोटाले की कड़ियां जुड़ती गईं। कारतूस घोटाले में चार आम नागरिक भी शामिल पाए गए। आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के बाद 13 साल पुराना यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
इस मामले की जांच के दौरान 29 अप्रैल 2010 को एसटीएफ टीम ने ज्वालानगर रेलवे क्रॉसिंग के पास छापा मारा। इसके बाद घोटाले के मास्टरमाइंड सेवानिवृत्त पीएसी इंस्पेक्टर यशोदा नंद के साथ ही दो सीआरपीएफ के जवान को भी गिरफ्तार किया गया। तीनों के कब्जे से एसटीएफ ने 1.76 लाख रुपये और ढाई क्विंटल चले हुए कारतूस, मैगजीन और हथियारों के पार्ट्स बरामद किए थे। इस मामले में एसटीएफ इंस्पेक्टर आमोद कुमार सिंह की शिकायत पर सिविल लाइंस कोतवाली में केस दर्ज किया गया था। जांच के दौरान टीम को यशोदा नंद के पास से एक डायरी मिली थी।
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नक्सलियों को कारतूस सप्लाई करने का भी आरोपकारतूस घोटाले के दोषियों पर नक्सलियों के संपर्क में रहने का भी आरोप लगा था। आरोप था कि ये सभी नक्सलियों को कारतूस सप्लाई करता थे। हालांकि, पुलिस ने दोषियों और नक्सलियों के बीच संबंध साबित करने में नाकाम रही। बचाव पक्ष ने सभी आरोपियों पर झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाया। अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रताप सिंह मौर्य व अमित कुमार ने मामले की पैरवी करते हुए 9 गवाह पेश किए। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि आरोपी को एसटीएफ ने मौके से गिरफ्तार किया था। सामान भी बरामद कर लिया गया। यशोदा नंद विभिन्न जिलों में तैनात आर्मोररों से खोखा और कारतूस खरीदकर नक्सलियों को सप्लाई करता था। दोनों पक्षों को सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश (ईसी एक्ट) विजय कुमार ने सभी को सरकारी संपत्ति की चोरी, चोरी के सामान की बरामदगी और साजिश की धाराओं के तहत दोषी ठहराया।
इसके बाद इन सभी को बी-वारंट पर रामपुर लाया गया। पूरे मामले की तफ्तीश के बाद पुलिस ने 27 जुलाई 2010 को मामले की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की। इसके मुताबिक, मास्टरमाइंड यशोदानंद पुलिस-PAC और CRPF में फायरिंग अभ्यास के बाद निकलने वाले खोखा कारतूस को खरीदता था। इसके लिए वह फोर्स के आर्मरर के साथ कनेक्ट रहता था।
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रामपुर जिले के तब के SP रमित शर्मा थे, जो इस समय प्रयागराज में कमिश्नर हैं। जांच के बाद यूपी और बिहार से गिरफ्तारियां की गईं। चार्जशीट दाखिल होने के तीन साल बाद 31 मई 2013 को कोर्ट ने सभी 25 आरोपियों पर आरोप तय कर दिए। मामले में इसी 4 अक्टूबर को बहस पूरी हो गई थी।बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में CRPF कर्मियों पर नक्सलियों पर हमला हुआ था। इसके बाद लखनऊ STF को इनपुट मिला था कि पुलिस और CRPF को दिए जाने वाले कारतूसों को बेचा जा रहा है। इसके बाद ही यूपी STF ने इस मामले में जांच शुरू की थी, जो कि कारतूस कांड तक पहुंची। यह पूरा मामला उस वक्त मीडिया में कारतूस कांड के नाम से सुर्खियों में रहा है।