राजसमंद. जिले में बोई गई चने की फसल में फली छेदक रोग का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। अभी यह प्रारंभिक अवस्था है, इसे दवाईओं का छिड़काव कर रोका जा सकता है। कृषि विभाग ने इसके लिए किसानों को कुछ सुझाव भी दिए हैं।
जिले में इस बार 5 हजार 394 हेक्टेयर में चने की फसल की बुवाई की गई है। पिछले कुछ दिनों से चल रहा मौसम फसलों के लिए अनुकूल है। इससे चने की फसल में अच्छी बढ़वार हो रही है, लेकिन कुछ स्थानों पर चने की फसल में फली छेदक कीट का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। अभी यह प्रारंभिक स्टेज पर है, इसे तुरंत रोका जा सकता है। इसमें बढऩे से फसल को नुकसान होगा और पैदावार भी घट जाएगी। इसके कारण कृषि विभाग की ओर से कुछ सुझाव दिए गए हैं, जिन्हें अपनाकर काश्तकार इस कीट के प्रकोर से चने की फसल को बचा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस बार मौसम फसलों के अनुकूल रहने के चलते बम्पर पैदावार की उम्मीद की जा रही है।
यह होता है फली छेदक कीट
कृषि विभाग के अनुसार फली छेदक कीट की लटें हरे रंग की होती है जो बाद में भूरे रंग की हो जाती है। यह प्रारंभ में पत्तियों को खाती है, फली लगने पर उसमें छेद कर दाना के चट कर खोखला कर देती है।
यह बताए उपय
– फली छेदक कीट का प्रकोप बढऩे पर उनके अंडे और सुण्डियों को इक_ा कर नष्ट कर दे।
– 4-5 फेरोमोन ट्रेप प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें तथा 15 दिन के अंतराल में ल्यूर को बदल दे।
– 50 प्रतिशत फूल आने पर एजेडीरेक्टीन (नीम का तेल) 700 मिमी प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए। तथा आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद फिर से इसी उपचार को दोहराना चाहिए। विभाग की ओर से इसी तरह के कई और उपाय बताए गए हैं।
इनका कहना है…
चने में फली छेदक रोग दिखाई दिया है, इससे बचाव के लिए काश्तकारों को कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। मुख्यालय को भी इससे अवगत करा दिया गया है। दवा आदि उपलब्ध कराने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।
– के.सी.मेघवंशी, उप निदेशक कृषि विभाग राजसमंद
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