राजसमंद. एक समय वे काफी डरी-सहमी रहती थीं। उनकी खुद की भी दिक्कतें थी। पर आज स्थिति बिल्कुल उलट है। वे डरती नहीं, बल्कि किसी भी परिस्थिति का डटकर मुकाबला करती हैं। अपने लिए नहीं, बल्कि समाज की उन सभी महिलाओं के लिए, जो पुरुषवादी मानसिकता से प्रताडि़त हैं। कोई पन्द्रह साल उन्हें उनके परिजनों के सिवा कोई जानता नहीं था, आज न केवल राजसमंद, बल्कि जहां भी वे जाती हैं, लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। राजसमंद जिले के लगभग सभी बड़े गांवों-कस्बों में लोग उन्हें काफी सम्मान देते हैं।
उनका साथ पाकर महिलाएं भी खुद को अकेला महसूस नहीं करती। हर प्रताडि़त महिला को आज इन साहसी महिलाओं का साथ मिलने लगा है। ये महिलाएं और कोई नहीं, बल्कि जिला मुख्यालय पर महिला मंच की उन ग्यारह कार्यकर्ताओं में से हैं जो प्रताडि़त महिलाओं के लिए कभी समय नहीं देखती। हर वक्त उनकी मदद को तैयार रहती है। ये बात अलग है कि इन महिलाओं को इतने साल हो गए दूसरों के लिए समाज से लड़ते-भिड़ते, पर जब कभी राज्य या जिला स्तरीय सम्मान की बात होती है तो इन्हें कोई याद नहीं करता, जबकि पहली हकदार ये ही हैं।
इनमें से राजस्थान पत्रिका की मुलाकात गीता कुंवर राठौड़ व देव बाई माली से हुई। दोनों दिखने में बहुत ही सरल लगी, लेकिन जब महिलाओं के साथ प्रताडऩा पर बात शुरू की तो उनकी आंखों में गुस्सा तैरने लगा। वे दुर्गा के अवतार में दिखाई देने लगी। सबसे बड़ी बात तो ये है कि गीता कुंवर मात्र पांचवीं तक पढ़ी है तो देवबाई ने तो स्कूल का मुंह नहीं देखा। पर ये सब उनके काम में आड़े नहीं आता।
गीता कुंवर
नाथद्वारा के कोठारिया क्षेत्र निवासी गीता कुंवर तो वे सभी धाराएं भी जानती व समझती हैं जिस पर महिलाओं से संबंधित मामले पुलिस में दर्ज होते हैं। वे कहती हैं, ‘एक ये अंग्रेजी मेरे समझ नहीं आती, बाकी हिन्दी तो मैं आराम से पढ़ लेती हूं।Ó वे कहतीं है, ‘मुझसे गलत बात बर्दाश्त नहीं होती। मुझे अच्छा नहीं लगता कि एक महिला को दबाया-कुचला जाए। ये बाल-विवाह, नाता प्रथा, बलात्कार, नाबालिग के साथ अत्याचार जैसी घटनाएं मुझे झकझोर देती है। मेरी रीढ़ की हड्डी में बचपन से दर्द है, मैं ज्यादा देर बैठ नहीं पाती, लेकिन जितना मुझसे बन पड़ता है, मैं महिलाओं के लिए दौड़ती-फिरती हूं।’ पुलिस की मदद को लेकर बात की तो वे बेबाक होकर बोलीं, ‘ये पुलिस ही यदि अपना दायित्व सही तरीके से निभा ले तो हम महिलाओं को इस तरह दौडऩा-फिरना नहीं पड़े। आज पुलिस थानों में प्रताडि़त महिलाओं के मामले दर्ज नहीं होते। उन्हें टरकाने का प्रयास रहता है। ऐसे में महिलाएं हताश होकर हमारे पास आती है। हमारे साथ भी पुलिस अच्छे से बर्ताव नहीं करती। इस पर हम बड़े पुलिस अधिकारियों से बात करते हैं, तब कहीं जाकर थाने वाले रिपोर्ट दर्ज करते हैं, वरना कोई नहीं सुनता। एक बार जिले के किसी क्षेत्र में नाबालिग बालिका के अपहण के मामले में थाने वालों ने मामला दर्ज करना तो दूर, उस नाबालिग का पता लगाने का प्रयास नहीं किया। छह दिन तक कुछ पता नहीं चला तो हम जाकर थाने के बाहर धरने पर बैठ गईं। कई बड़े अधिकारियों के फोन आए, तब कहीं जाकर उस नाबालिग बिटिया को बरामद किया गया। वो भी तो किसी की बच्ची है। आखिर क्यों करते हैं आप ऐसा’? ऐसे पचासों मामले हैं, जिन्हें गीता कुंवर व उनकी टीम ने समझाइश या मुकाबला कर सुलझाया है। मामले को सुलझाने के बाद भी ये टीम चुप नहीं बैठती, उनका फोलो-अप भी करती हैं। वे बराबर उन महिलाओं के सम्पर्क में रहती हैं।
देवबाई माली
काफी उम्र होने के बाद भी वे कड़क मिजाज की हैं। उनका बात करने का लहजा तो वाकई सामने वाले को सहमा सकता है। ये सही भी है कि सच्चाई महिलाओं को ताकतवर बना देती है। नाथद्वारा के ही बागोल क्षेत्र निवासी देव बाई पिछले बीस साल से प्रताडि़त व परेशान महिलाओं के लिए लड़ रहीं है। अनपढ़ है, अत: वे पढ़ तो नहीं सकती, पर अपने साहस के बूते वे अपनी बात कहने का माद्दा रखतीं है। जब उनसे पूछा गया कि वे पुरुष समाज से डरती नहीं है, वे तपाक से कहती हैं, ‘क्यों डरूं, मैंने क्या गलत किया है। मुझे किसी का डर नहीं। यदि किसी महिला को सताया है तो उन्हें भुगतना ही होगा। मैं पुलिस-कोर्ट कहीं भी जाऊंगी, पर महिला को तो न्याय दिला कर रहूंगी। केवल राजसमंद ही नहीं, मैं बाहर भी कई जगह जाकर महिलाओं के लिए लड़ी हूं। पुरुष वर्ग को ऐसा तो नहीं करना चाहिए। महिला का सम्मान करना चाहिए।’ देवबाई ने न जाने कितने ही मामले सुलझाने में अपनी टीम के साथ योगदान दिया है, संख्या तो उन्हें भी याद नहीं है।
उनका साथ पाकर महिलाएं भी खुद को अकेला महसूस नहीं करती। हर प्रताडि़त महिला को आज इन साहसी महिलाओं का साथ मिलने लगा है। ये महिलाएं और कोई नहीं, बल्कि जिला मुख्यालय पर महिला मंच की उन ग्यारह कार्यकर्ताओं में से हैं जो प्रताडि़त महिलाओं के लिए कभी समय नहीं देखती। हर वक्त उनकी मदद को तैयार रहती है। ये बात अलग है कि इन महिलाओं को इतने साल हो गए दूसरों के लिए समाज से लड़ते-भिड़ते, पर जब कभी राज्य या जिला स्तरीय सम्मान की बात होती है तो इन्हें कोई याद नहीं करता, जबकि पहली हकदार ये ही हैं।
इनमें से राजस्थान पत्रिका की मुलाकात गीता कुंवर राठौड़ व देव बाई माली से हुई। दोनों दिखने में बहुत ही सरल लगी, लेकिन जब महिलाओं के साथ प्रताडऩा पर बात शुरू की तो उनकी आंखों में गुस्सा तैरने लगा। वे दुर्गा के अवतार में दिखाई देने लगी। सबसे बड़ी बात तो ये है कि गीता कुंवर मात्र पांचवीं तक पढ़ी है तो देवबाई ने तो स्कूल का मुंह नहीं देखा। पर ये सब उनके काम में आड़े नहीं आता।
गीता कुंवर
नाथद्वारा के कोठारिया क्षेत्र निवासी गीता कुंवर तो वे सभी धाराएं भी जानती व समझती हैं जिस पर महिलाओं से संबंधित मामले पुलिस में दर्ज होते हैं। वे कहती हैं, ‘एक ये अंग्रेजी मेरे समझ नहीं आती, बाकी हिन्दी तो मैं आराम से पढ़ लेती हूं।Ó वे कहतीं है, ‘मुझसे गलत बात बर्दाश्त नहीं होती। मुझे अच्छा नहीं लगता कि एक महिला को दबाया-कुचला जाए। ये बाल-विवाह, नाता प्रथा, बलात्कार, नाबालिग के साथ अत्याचार जैसी घटनाएं मुझे झकझोर देती है। मेरी रीढ़ की हड्डी में बचपन से दर्द है, मैं ज्यादा देर बैठ नहीं पाती, लेकिन जितना मुझसे बन पड़ता है, मैं महिलाओं के लिए दौड़ती-फिरती हूं।’ पुलिस की मदद को लेकर बात की तो वे बेबाक होकर बोलीं, ‘ये पुलिस ही यदि अपना दायित्व सही तरीके से निभा ले तो हम महिलाओं को इस तरह दौडऩा-फिरना नहीं पड़े। आज पुलिस थानों में प्रताडि़त महिलाओं के मामले दर्ज नहीं होते। उन्हें टरकाने का प्रयास रहता है। ऐसे में महिलाएं हताश होकर हमारे पास आती है। हमारे साथ भी पुलिस अच्छे से बर्ताव नहीं करती। इस पर हम बड़े पुलिस अधिकारियों से बात करते हैं, तब कहीं जाकर थाने वाले रिपोर्ट दर्ज करते हैं, वरना कोई नहीं सुनता। एक बार जिले के किसी क्षेत्र में नाबालिग बालिका के अपहण के मामले में थाने वालों ने मामला दर्ज करना तो दूर, उस नाबालिग का पता लगाने का प्रयास नहीं किया। छह दिन तक कुछ पता नहीं चला तो हम जाकर थाने के बाहर धरने पर बैठ गईं। कई बड़े अधिकारियों के फोन आए, तब कहीं जाकर उस नाबालिग बिटिया को बरामद किया गया। वो भी तो किसी की बच्ची है। आखिर क्यों करते हैं आप ऐसा’? ऐसे पचासों मामले हैं, जिन्हें गीता कुंवर व उनकी टीम ने समझाइश या मुकाबला कर सुलझाया है। मामले को सुलझाने के बाद भी ये टीम चुप नहीं बैठती, उनका फोलो-अप भी करती हैं। वे बराबर उन महिलाओं के सम्पर्क में रहती हैं।
देवबाई माली
काफी उम्र होने के बाद भी वे कड़क मिजाज की हैं। उनका बात करने का लहजा तो वाकई सामने वाले को सहमा सकता है। ये सही भी है कि सच्चाई महिलाओं को ताकतवर बना देती है। नाथद्वारा के ही बागोल क्षेत्र निवासी देव बाई पिछले बीस साल से प्रताडि़त व परेशान महिलाओं के लिए लड़ रहीं है। अनपढ़ है, अत: वे पढ़ तो नहीं सकती, पर अपने साहस के बूते वे अपनी बात कहने का माद्दा रखतीं है। जब उनसे पूछा गया कि वे पुरुष समाज से डरती नहीं है, वे तपाक से कहती हैं, ‘क्यों डरूं, मैंने क्या गलत किया है। मुझे किसी का डर नहीं। यदि किसी महिला को सताया है तो उन्हें भुगतना ही होगा। मैं पुलिस-कोर्ट कहीं भी जाऊंगी, पर महिला को तो न्याय दिला कर रहूंगी। केवल राजसमंद ही नहीं, मैं बाहर भी कई जगह जाकर महिलाओं के लिए लड़ी हूं। पुरुष वर्ग को ऐसा तो नहीं करना चाहिए। महिला का सम्मान करना चाहिए।’ देवबाई ने न जाने कितने ही मामले सुलझाने में अपनी टीम के साथ योगदान दिया है, संख्या तो उन्हें भी याद नहीं है।
बहुत साहसी हैं ये महिलाएं
हमारे महिला मंच की कार्यकर्ता काफी साहसी हैं। इन्हें कई बार दिक्कतें आती हैं तो हम उच्चाधिकारियों से बात करते हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रताडऩा के काफी मामले बढ़े हैं। ऐसे में हमारा काम भी काफी बढ़ गया है। कई बार दूरियों की वजह से हमें दिक्कत आती है, पर हमारी टीम हिम्मत नहीं हारती और जहां जरूरत होती है, वहां जाती है। हमारी ऐसी ग्यारह कार्यकर्ता हैं, जिन्हें हम साल में दो बार कानून आदि के बारे में प्रशिक्षण देते हैं, ताकि वे कहीं भी अपनी बात कह सकें। इसके अलावा जिला मुख्यालय पर महिला मंच में हर माह दो नारी अदालत लगती हैं, जहां विभिन्न प्रकरणों पर बातचीत होती है। उन्हें सुलझाने के प्रयास होते हैं।
– शकुन्तला पामेचा, संयोजिका, महिला मंच राजसमंद
हमारे महिला मंच की कार्यकर्ता काफी साहसी हैं। इन्हें कई बार दिक्कतें आती हैं तो हम उच्चाधिकारियों से बात करते हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रताडऩा के काफी मामले बढ़े हैं। ऐसे में हमारा काम भी काफी बढ़ गया है। कई बार दूरियों की वजह से हमें दिक्कत आती है, पर हमारी टीम हिम्मत नहीं हारती और जहां जरूरत होती है, वहां जाती है। हमारी ऐसी ग्यारह कार्यकर्ता हैं, जिन्हें हम साल में दो बार कानून आदि के बारे में प्रशिक्षण देते हैं, ताकि वे कहीं भी अपनी बात कह सकें। इसके अलावा जिला मुख्यालय पर महिला मंच में हर माह दो नारी अदालत लगती हैं, जहां विभिन्न प्रकरणों पर बातचीत होती है। उन्हें सुलझाने के प्रयास होते हैं।
– शकुन्तला पामेचा, संयोजिका, महिला मंच राजसमंद