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अरावली की स्वर्ण शैल नामक पहाड़ी पर विराजित है अन्न-धन व जल की दाता मां अन्नपूर्णा

शहर के पास से गुजर रहे हाईवे के निकट राजनगर क्षेत्र में मां अन्नपूर्णा माता मंदिर बना हुआ है। प्राचीन कालीन मंदिर में नवरात्र में हजारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। मेवाड़ में अन्न-धन और जल की दाता मां अन्नपूर्णा को माना जाता है।

राजसमंदOct 05, 2024 / 11:01 am

himanshu dhawal

अरावली की स्वर्ण शैल नामक पहाड़ी पर विराजित मां अन्नपूर्णा

हिमांशु धवल
राजसमंद.
अरावली की हरी-भरी पहाडिय़ों के बीच स्वर्ण शैल नामक पहाड़ी पर मां अन्नपूर्णा माता मंदिर में विराजित है। यहां पर विराजित मां की प्रतिमा प्राचीन काल की बताई जाती है, लेकिन मंदिर (राजप्रासाद) का निर्माण विक्रम संवत 1726 में हुआ। मेवाड़ को अन्न और धन से समृद्ध बनाए रखने वाली मां अन्नपूर्णा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही राजसमुद्र और राजनगर की प्राण प्रतिष्ठा की गई। जन-जन की आस्था का केन्द्र इस मंदिर में नवरात्र में प्रतिदिन सैंकडों श्रद्धालु दूर-दराज से दर्शन के लिए आते हैं। विक्रम संवत् 1698 में महाराणा राजसिंह विवाह के लिए जैसलमेर जा रहे थे तो गोमती नदी का वेग तेज होने के कारण वह उसे पार नहीं कर पाए। इस दौरान वह राजमंदिर की पहाड़ी पर आए और उन्होंने चहुंओर फैले अथाह जल को देखा और मन में संकल्प लिया कि जब भी अवसर मिलेगा इस अथाह पानी को बाधूंगा। संवत् 1709 में शासन संभालने के बाद वह पुन: राजमंदिर पधारे और अपने विशिष्ट लोगों के समक्ष अपनी इच्छा जाहिर की। इसके पश्चात संवत् 1718 में में राजसमुद्र की निर्माण प्रारंभ हुआ। नींव भरने का काम संवत् 1721 में हुआ। राजसमंद झील की प्रतिष्ठा 1732 हुई। इस कार्य को पूरा होने में 14 वर्ष से अधिक का समय लगा। विक्रम संवत् 1726 की माघ शुक्ल पक्ष की दशमीं में राजमंदिर राजप्रासाद में प्रवेश करने के छह वर्ष पश्चात 1732 में महाराणा राजसिंह ने राजमसंद झील एवं राजनगर का प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न कराया। मंदिर का निर्माण महल की तरह करवाया गया है। मां अन्नपूर्णा के कारण मेवाड़ में अन्न-धन-जल की कभी कमी होती है।

मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा प्राचीन

इतिहास के जानकार दिनेश श्रीमाली ने बताया कि मेवाड़ के पहले महाराणा हमीर सिंह ने चितौड़ के किले में करीब 1335 में मां अन्नपूर्णा माता मंदिर का निर्माण करवाया था। वहां से मां अन्नपूर्णा की ज्योत लाकर पहाड़ी पर स्थापित की थी। महाराणा राजसिंह ने मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर का निर्माण करवाया। निर्माण में वास्तु का विशेष ध्यान रखा गया है। इशान कोण को देवस्थान माना जाता है। मंदिर का निर्माण और राजनगर का निर्माण भी इसी कोण में हुआ है। इसके कारण गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है।

मां की प्रतिमा संगमरमर की

मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा संगमरमर की बनी हुई है। अधिकांश मां दुर्गा की प्रतिमाओं पर तेज और क्रोध दिखाई देता है, लेकिन यहां पर नयनाभिराम मां दुर्गा स्वरूपा के मुख मंडल पर तेज-ओज और शांत प्रकृति की सौमयता का भाव इसे विशिष्टता का भाव प्रदान करता है। मंदिर के निर्माण में साढ़े छह साल का समय लगा था।

नवरात्र में नियमित हो रहे दुर्गापाठ

मंदिर के पुजारी पंडित गोपाल श्रोत्रिय ने बताया कि नवरात्र के दौरान मंदिर में नियमित रूप से तीनों समय दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। अष्टमी पर यहां पर हवन होता है। साथ ही नवमीं पर हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। अन्नपूर्णा माता मंदिर की मान्यता है कि मां के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं के घर के भंडार हमेशा भरे रहते हैं। मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती है। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सारी थकान मां के दर्शन मात्र से दूर हो जाती हैं।

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