मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा प्राचीन
इतिहास के जानकार दिनेश श्रीमाली ने बताया कि मेवाड़ के पहले महाराणा हमीर सिंह ने चितौड़ के किले में करीब 1335 में मां अन्नपूर्णा माता मंदिर का निर्माण करवाया था। वहां से मां अन्नपूर्णा की ज्योत लाकर पहाड़ी पर स्थापित की थी। महाराणा राजसिंह ने मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर का निर्माण करवाया। निर्माण में वास्तु का विशेष ध्यान रखा गया है। इशान कोण को देवस्थान माना जाता है। मंदिर का निर्माण और राजनगर का निर्माण भी इसी कोण में हुआ है। इसके कारण गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है।
मां की प्रतिमा संगमरमर की
मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा संगमरमर की बनी हुई है। अधिकांश मां दुर्गा की प्रतिमाओं पर तेज और क्रोध दिखाई देता है, लेकिन यहां पर नयनाभिराम मां दुर्गा स्वरूपा के मुख मंडल पर तेज-ओज और शांत प्रकृति की सौमयता का भाव इसे विशिष्टता का भाव प्रदान करता है। मंदिर के निर्माण में साढ़े छह साल का समय लगा था।
नवरात्र में नियमित हो रहे दुर्गापाठ
मंदिर के पुजारी पंडित गोपाल श्रोत्रिय ने बताया कि नवरात्र के दौरान मंदिर में नियमित रूप से तीनों समय दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। अष्टमी पर यहां पर हवन होता है। साथ ही नवमीं पर हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। अन्नपूर्णा माता मंदिर की मान्यता है कि मां के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं के घर के भंडार हमेशा भरे रहते हैं। मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती है। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सारी थकान मां के दर्शन मात्र से दूर हो जाती हैं।