महाराणा प्रताप ने भले ही दुःख सहे, जंगलों में जीवन गुजारा, लेकिन उन्होंने आखिरी सांस तक अपनी मातृभूमि की आजादी को अक्षुण्ण रखा। सम्राट अकबर का मेवाड़ पर बार-बार आक्रमण और विजय का नापाक इरादा अधूरा ही रहा। अकबर ने वर्षों तक कई संधी प्रस्ताव भेजे, लेकिन महाराणा प्रताप नहीं माने। फिर अकबर ने युद्धों की मार से मेवाड़ को डराने की कोशिश की। लेकिन प्रताप के हौसले के आगे मेवाड़ को गुलाम बनाने का अकबर का ख्वाब, ख्वाब ही रहा। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने अपने शौर्य, पराक्रम, विलक्षण युद्धनीति और कौशल के दम पर कई हल्दीघाटी, दिवेर सहित मेवाड़भर की जमीनों पर कई युद्ध लड़े और मुगलों का मेवाड़ को गुलाम बनाने का ख्वाब मिट्टी में मिला दिया।
महाराणा प्रताप का संक्षिप्त जीवन परिचयः
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 को प्रताप की जन्मतिथि है, मगर मेवाड़ में विक्रम संवत के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठमास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रताप का जन्मोत्सव मनाया जाता है। प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ किले में हुआ था। पिता उदयसिंह और माता जयवंता बाई थीं। उनका प्रिय अश्व चेतक हल्दीघाटी के युद्ध में शहीद हो गया था। प्रताप का महाप्रयाण 19 जनवरी 1597 को मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी चावंड में हुआ था।