यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां की गई तपस्या से ही उन्होंने भगवान शिव से धनुष और अक्षय तरकश प्राप्त किया था। उस तरकश के बाण कभी खत्म नहीं होते थे और धनुष हमेशा अचूक निशाना लगाता था। यहीं से उन्हें अपना प्रसिद्ध फरसा प्राप्त हुआ था। यह पूरी गुफा एक चट्टान पर बनी है। शिवलिंग पर गोमुख बना हुआ है जिससे भगवान शिव पर जलधारा गिरती है।
गुफा में शिला पर एक राक्षस की आकृति भी बनी हुई है। कहते हैं कि इस राक्षस का अंत परशुराम ने अपने फरसे से किया था। स्थानीय लोग इसे अमरनाथ धाम कहते हैं क्योंकि जिस प्रकार कश्मीर स्थित अमरनाथ धाम में भगवान शिव साक्षात वास करते हैं उसी प्रकार यहां भी शिव का अखंड निवास है।
उल्लेखनीय है कि परशुराम महादेव मंदिर राजस्थान के राजसमंद व पाली जिले की सीमा पर स्थित है। गुफा राजसमंद जिले में आती है तो कुंड पाली जिले में है। शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इस पर सैकड़ों लीटर जल चढ़ाने पर भी यह उसे आत्मसात कर लेता है क्योंकि इसमें छिद्र है। जबकि दूध चढ़ाने पर वह छिद्र में नहीं समाता। इसका कारण आज तक लोगों के लिए रहस्य ही बना हुआ है। श्रावण मास में यहां मेला भी भरता है जिसमें अनेक श्रद्धालु भगवान शिव और परशुराम को नमन करने आते हैं।