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लोक मान्यता : मां चामुंडा की कृपा से नीम का पेड़ आधा मीठा तो आधा है कड़वा

अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थित प्राचीन चामुण्डा माता का मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है। यह मंदिर सिर्फ क्षेत्र के लोगों की ही आस्था का केन्द्र नहीं है, बल्कि इस मंदिर में मेवाड़ ही नहीं मारवाड़ के अलावा महाराष्ट्र राज्य के मुंबई, नासिका और पूना एवं गुजरात, मध्यप्रदेश कर्नाटक तक से नवरात्रा में चामुंडा माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं।

राजसमंदOct 09, 2024 / 11:44 am

himanshu dhawal

केलवागढ़ में मां चामुण्डा माता का मंदिर

भरत कुमार रजक
केलवा.
कस्बे में अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थित प्राचीन चामुण्डा माता का मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है। मन्दिर का निर्माण चुंडावत शासकों की ओर से करवाया गया था, जिसमें माता की तीन मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें दो मां चामुण्डा की और एक बायण माता की है। यह मंदिर सिर्फ क्षेत्र के लोगों की ही आस्था का केन्द्र नहीं है, बल्कि इस मंदिर में मेवाड़ ही नहीं मारवाड़ के अलावा महाराष्ट्र राज्य के मुंबई, नासिका और पूना एवं गुजरात, मध्यप्रदेश कर्नाटक तक से नवरात्रा में चामुंडा माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रद्धालु धरातल से लेकर माताजी के मंदिर तक बिना जूते-चप्पल के पदयात्रा करते हुए पहुंचते हैं। मंदिर में माता की मूर्ति राठौड़ वंश की ओर से स्थापित की गई थी। मंदिर में की गई कांच की भव्य नक्काशी मंदिर को और भी आकर्षक बनाती है। नवरात्रा में 9 दिन तक माता के विभिन्न स्वरूपों का विभिन्न पोशाकों से विशेष रूप से शृंगार कराया जाता है तथा हवन-पूजन के साथ ही कीर्तन किया जाता है। ऐसे में नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का सैलाब रहता है, जिससे दिन के समय तो यहां का नजारा किसी मेले सा बन जाता है। मंदिर में जो भी भक्त आते हैं उनके लिए यहां मंदिर बाहर िस्थत एक नीम का पेड़ा खासा आकर्षण और कौतुहल का केन्द्र रहता है। इसके पीछे मुख्य कारण इस पेड़ का आधा हिस्सा मीठा और आधा कड़वा होना है। इस पेड़ की यह िस्थति बरसों से है, जो आज भी वैसा ही है। यहां से नीम के पेड़ के पत्ते श्रद्धालु प्रसाद के रूप में अपने साथ ले जाकर घर पर सभी को खिलाते हैं। इस पेड़ के आधा कड़वा और आधा मीठा होने के पीछे लोगों में धारणा है कि ऐसा मां चामुण्डा की कृपा से ही हुआ है। वहीं, लोगों में यह भी मान्यता है कि इस पेड़ की पत्तियां खाने से कई तरह की बीमारियों में भी लोगों को राहत मिलती है। ऐसे में यहां आने वाले भक्त पूरी श्रद्धा के साथ इस पेड़ की परिक्रमा भी करते हैं। यहीं नहीं यहां पर लोग मां चामुंडा से पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर पालना भी बांधते हैं। इसके बाद जिस भी भक्त को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, वे अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर प्रसादी का आयोजन करते हैं।

सिसोदिया परिवार के सदस्य करते हैं पूजा

मंदिर में प्राचीन समय से चल रही परंपरा के तहत सिसोदिया परिवार के सदस्य पूजा करते आ रहे हैं। मन्दिर के पुजारी किरणसिंह सिसोदिया, जयराम तेली ने बताया कि केलवागढ़ स्थित माताजी के मंदिर में तीन मूर्तियां स्थापित हैं। इसमें दो चामुंडा की व एक बायन माता की है। वहीं, तेली नकुम समाज की कुलदेवी चामुंडा माता, सिसोदिया एवं चुंडावत समाज की कुलदेवी भी बायन माता है। वर्तमान में यह देवी खेड़ा देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है, जहां सावन-भादो में क्षेत्र के किसान सुख-समृद्धि की कामना को लेकर पैदल पहुंचकर पूजा करते हैं।

चारों ओर मार्बल माइंस फिर भी मंदिर सुरक्षित

चामुंडा माता के मंदिर के चारों ओर मार्बल माइंस की भरमार होने से मंदिर के अस्तित्व को खतरा लग रहा था। ऐसे में लोगों की यह भी मान्यता है कि यह चामुंडा माता का चमत्कार ही है कि चामुंडा माताजी ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र के मार्बल में क्रैकर्स और दरारें कर दी, जिसकी वजह से यहां मार्बल खनन पूर्णत: रुका हुआ है। ऐसे में खनन नहीं होने से मंदिर को अब किसी तरह का खतरा नहीं है।

स्पष्ट दिखता है राजसमंद झील का नजारा

कस्बे से राजसमंद झील करीब दस से बाहर किलोमीटर दूर होने के बावजूद केलवागढ़ के चामुंडा माता मंदिर से झील का आकर्षक नजारा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

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