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पहली बार नाथद्वारा की तर्ज पर कांकरोली में ठाकुरजी के सम्मुख होगी गौ क्रीड़ा

गिरधरगढ़ में द्वारकाधीश मनाएंगे 300वीं दीपावली, दशहरा से ही मंदिर में अखंड जलता है दीपक

राजसमंदOct 23, 2019 / 11:51 am

laxman singh

पहली बार नाथद्वारा की तर्ज पर कांकरोली में ठाकुरजी के सम्मुख होगी गौ क्रीड़ा

लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद
पहली बार नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर की तर्ज पर कांकरोली में श्री द्वारकाधीश मंदिर के मुख्य द्वार पर गौ क्रीड़ा होगी। पुष्टि परंपरा के तहत मंदिर में दशहरा से ही दीपोत्सव का आगाज हो जाता है, जहां मंदिर के शिखर पर अखंड दीपक जलता है। श्री प्रभु 349 वर्ष आसोटिया में पधारे, जहां बाढ़ आने से तत्कालीन मंदिर बहने पर श्री प्रभु 1776 में कांकरोली में नवनिर्मित गिरधरगढ़ में पधारे थे, जहां ब्रज की तरह ही तीन सौ वर्षों से पुष्टि परंपरा से दीपोत्सव मनाया जा रहा है। इस मंदिर में द्वारकाधीश प्रभु की पूजा नहीं होती, बल्कि सेवा की परंपरा है। दीपोत्सव पर राजसमंद ही नहीं, बल्कि गुजरात, मुंबई, एमपी, यूपी से भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु उमड़ते हैं। इसको लेकर मंदिर प्रबंधन द्वारा आवश्यक तैयारियां पूर्ण कर ली गई है।
औरंगजेब शासन में मंदिर तोडऩे के फरमान पर व्रजभूषणजी गंगाबेटी के साथ 1720 में गोकुल से रवाना होकर अहमदाबाद के रायपुर में मकान में द्वारकाधीश को बिराजित किया। फिर शासन अहमदाबाद में भी प्रभु के विग्रह को क्षति पहुंचाने पहुंच गया, मगर हिंदू धर्म के प्रबल संरक्षक माने जाने वाले महाराणा राजसिंह के आग्रह पर श्री द्वारकाधीश का विग्रह 1727 में सादड़ी लाया गया, जहां से महाराणा द्वारा राजसी लवाजमे के साथ श्री प्रभु को आसोटिया के मंदिर में बिराजित किया। इसी तरह आगरा, कोटा, जोधपुर, कृष्णगढ़ होते हुए श्रीनाथजी भी 1728 में नाथद्वारा पधार गए। तेज बारिश आने पर आसोटिया के मंदिर में जब पानी आ गया, तो श्री प्रभु को देवल मंगरी के छोटे से मंदिर में बिराजित किया गया। तब तक झील किनारे मंदिर बन गया। ठीक 49 वर्ष बाद श्री प्रभु का नवनिर्मित गिरधरगढ़ में पर्दापण हुआ, जहां इस बार श्री द्वारकाधीश 300वीं दीपावली मनाएंगे। इसके तहत इस बार मंदिर पर आकर्षक रंग रोगन कर लिया और लाइट डेकोरेशन का कार्य अंतिम चरण में है।
जर्जर भवन ढहाकर बनाया मैदान
श्री द्वारकाधीश मंदिर के मुख्य द्वार के बगल में जर्जर भवन को ढहाकर मैदान तैयार किया गया। यहां से न सिर्फ पूरे शहर का विहंगम दृश्य दिखता है, बल्कि विशेष पर्व, महोत्सव व मनोरथों में भगदड़ की स्थिति भी नहीं बनेगी। मुख्य द्वार पर मैदान तैयार होने से पहली बार श्रीनाथजी मंदिर की तर्ज पर कांकरोली में श्री द्वारकाधीश मंदिर के द्वार पर गौ क्रीड़ा होगी। श्री कृष्ण भाव से गायों को रिझाने च खेलाने की परंपरा है, जिसे देखने के लिए शहरवासियों के साथ गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तक से भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
अमेरिका में भी द्वारकाधीश का मंदिर
कांकरोली के साथ बोडेली (गुजरात), हालोल (गुजरात), न्यूजर्सी (अमेरिका), उदयपुर, सुखधाम (बड़ौदा), मेहसाणा (गुजरात), जबुगांव (गुजरात), पाटण (गुजरात), नसवाड़ी (गुजरात), मेहमदाबाद (गुजरात), माकवा (राजस्थान), डभोई (गुजरात), बायड़ (गुजरात) में श्री द्वारकाधीश मंदिर है। इसी तरह श्री महाप्रभुजी की बैठक, मानसरोवर (व्रज), श्री मदनमोहन मंदिर नागपुर (महाराष्ट्र), श्री गोवर्धननाथ हवेली अलकापुरी (बड़ौदा), श्री बैठक मंदिर आणंद (गुजरात), श्री दयालजी मंदिर आणंद (गुजरात) व श्री मरजादी मंदिर, कठलाल (गुजरात) में है।
मंदिर में ठाकुरजी के चार स्वरुप
कांकरोली के मंदिर में श्री द्वारकाधीश के साथ दाऊजी व गोवर्धननाथ के भी स्वरुप है। इसके अलावा मथुराधीश जी का भी मंदिर स्थित है। चारों स्वरुपों की सेवा की परम्परा एक ही तरह की है।
अष्ट पहलू में बिराजेंगे श्री प्रभु
दीपावली के दिन श्री द्वारकाधीश प्रभु को अष्ट पहलू में बिराजित किया जाएगा। शयन दर्शन में कान्ह तिबारी में श्री प्रभु के समक्ष कान्ह जगाई की रस्म निभाई जाएगी। ग्वाल बाल हीड़ का गायन करेंगे। एक गाय कमल चौक में पहुंचेगी, जहां गायों को कान जगाई की रस्म है। दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गोशाला से सौ गायें गोवर्धन चौक पहुंची, जहां से सात गायें मुख्य द्वार पर गौ क्रीड़ा करेंगी।
प्रभु की तस्वीर खींचना प्रतिबंधित
पुष्टि परंपरा के तहत निज मंदिर में पीठाधीश व गोस्वामी परिवार के अलावा मुखियाजी, भीतरिया के अलावा अन्य लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। ठाकुरजी के स्वरुप की तस्वीर खींचना भी वर्जित है। इसके तहत मंदिर में कोई भी व्यक्ति मोबाइल व कैमरा भी नहीं ले सकता।

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