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500 वर्ष पहले पहाड़ी पर एक-एक ईंट ले जाकर किया था सेंडमाता मंदिर का निर्माण, जानें क्या है इसका इतिहास 

Rajsamand News: नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का सैलाब रहता है, जिससे नौ ही दिन यहां का नजारा किसी मेले सा बन जाता है।

राजसमंदOct 03, 2024 / 02:21 pm

Alfiya Khan

Send Mata Mandir: देवगढ़। नगर के समीप भीलवाड़ा मार्ग पर स्थित मदारिया के निकट अरावली पर्वतमाला की तीसरी सबसे ऊंची चोटी पर बना सेंडमाता का मंदिर करीब पांच सौ वर्ष पुराना है। यहां मेवाड़ ही नहीं मारवाड़ सहित दूरदराज से भी भक्त घने जंगलों से होकर 800 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर दर्शन करने पहुंचते हैं।
क्षेत्र के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र करीब 500 वर्ष पुराने सेंड माता मंदिर का निर्माण तत्कालीन आमेट ठिकाने के राव मानसिहं ने करवाया था। आमेट ठिकाने के ज्ञानसिंह चूंडावत के अनुसार मान्यता है कि आमेट ठिकाने के राव विक्रम संवत 1679 में इन जंगलों में भटक रहे थे। उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं रहा, ऐसे में वहां एक ऊंटनी पर सवारी करके महिला प्रकट हुई, जिसने राव को सही रास्ते का ज्ञान कराया तथा बताया कि मेरा मंदिर इस पहाड़ी पर बना दो।
ऐसा आदेश मिलने पर आमेट ठिकाने के राव ने भेडियों की जन्मस्थली अरावली की इस मनोरम पहाड़ी पर एक गुफा के पास मंदिर बनवाकर के मूर्ति स्थापित करवाई, जिसे आज लोडी सेंड माता के नाम से जाना जाता है। कुछ वर्षों बाद देवी ने राव को स्वप्न में ऊंची पहाड़ी पर मंदिर बनाने को कहा तब विक्रम सं. 1720 में राव मानसिहं ने चालीस फीट (बीस हाथ) लम्बे विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
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मंदिर निर्माण में नीचे से पहाड़ी शिखर पर एक-एक ईंट सिर पर रखकर पहुंचाने वाले साहसी श्रमिकों को इसके बदले एक-एक सोने का टका देकर सम्मानित किया गया था। ऊंटनी को क्षेत्रीय भाषा में सेंड कहा जाता है इसलिए सेंड माता नाम से मंदिर प्रख्यात हुआ। जानकारी में यह भी आया कि कालान्तर में देवगढ़ ठिकाने के शासकों ने मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार और सीढिया निर्माण तथा महारावत विजयसिहं की ओर से देवी मां की नवीन मूर्ति स्थापना करवाई।

मंदिर में की गई है कांच की भव्य नक्काशी

सेंड माता के भव्य मंदिर के अंदर कांच की नक्काशी की हुई है। वहीं मूर्ति संगमरमर की है। नवरात्रि में नौ दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों का विभिन्न पोशाकों से श्रृंगार करवाया जाता है तथा पारंपरिक रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का सैलाब रहता है, जिससे नौ ही दिन यहां का नजारा किसी मेले सा बन जाता है।
यह मंदिर राजस्थान ही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र बना हुआ है। बताया जाता है कि मंदिर प्रांगण के समीप एक बड़ी चट्टान है, जिसको लेकर भी विशेष मान्यता है।

पर्यटन की दृष्टि से भी है महत्वपूर्ण

समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर दूरदराज के देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए भी खासा आकर्षण का केन्द्र है। इस मंदिर के प्रांगण से 100 किलोमीटर के दायरे में बसे गांव एक टापू से दिखाई देते हैं। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि कई प्राकृतिक आपदाओं से जूझ चुके इस मंदिर में आज तक जनहानि नहीं हुई है। सेंड माता मंदिर जाने के लिए देवगढ़ से 12 किलोमीटर दूर वाया ताल भीम रोड पर लसानी कस्बे एवं देवगढ़ से करेड़ा वाया मदारिया सड़क मार्ग पर मदरिया गांव से 6 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है।
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