सरकार के वादे पर ऐतबार कर शहीद की मां ने अपने बेटे की अस्थियां संभाल कर रख ली ताकि जब स्मारक मनाए जब वह उन अस्थियों को उसमें रख देंगी। तीन साल हो गए लेकिन उस मां का इन्तजार खत्म नहीं हुआ और वह आज भी अपने बेटे की अस्थियां लिए दर-ब-दर भटकने को मजबूर है।
यही नहीं गांव के स्कूल का नाम भी शहीद के नाम पर रखा जाना था। स्कूल के नामकरण के लिए विभाग ने प्रस्ताव भी बनाया लेकिन जिस जगह का चयन किया गया, प्रशासन ने शहीद के परिजनों को जानकारी नहीं दी और पंचायत ने निर्माण करा दिया ।
आधा-अधूरा शहीद स्मारक जहां बना है वहां से नाली बहती है ऐसे में शहीद की मां अपने बेटे की अस्थियां वहां रखने को राजी नहीं है। उन्होंने किसी साफ़ सुथरे जगह स्मारक बनाने के लिए काफी प्रयास किया लेकिन शासन की कानों मने जूं तक नहीं रेंगी
स्कूल के प्राचार्य का कहना है कि स्कूल का नाम शहीद के नाम पर करने के लिए कई बार प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है, लेकिन गांव की पंचायत में सहमति नहीं बनने की वजह से नामकरण नहीं हो पाया।