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राजगढ़

पेड़ से उतरने से पहले बिक जाता है मालवा का ये फल, देशभर में घोलता है मिठास

स्थानीय थोक व्यापारियों के साथ ही हरियाणा पंजाब, राजस्थान, नई दिल्ली के खरीदार भी यहां पहुंचते हैं।

राजगढ़Jan 27, 2022 / 04:47 pm

Subodh Tripathi

पेड़ से उतरने से पहले बिक जाता है मालवा का ये फल, देशभर में घोलता है मिठास

पेड़ से उतरने से पहले बिक जाता है मालवा का ये फल, देशभर में घोलता है मिठास

राजगढ़/ब्यावरा. मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र का संतरा देशभर में अपनी मिठास घोलता है, आश्चर्य की बात तो यह है कि यह पेड़ से उतरने से पहले ही बिक जाता है, इसकी डिमांड देशभर में होने के कारण हर साल करोड़ों रुपए का व्यापार होता है, जिससे किसान भी आर्थिक रूप से समृद्ध होते हैं, इस फल से किसान से लेकर फूटकर और थोक व्यापारी, ट्रांसपोर्ट आदि सभी को कमाई होती है।

मध्यप्रदेश में पलायन, बरोजगारी और अन्य प्रशासनिक खामियों के कारण भले ही हम बेकवर्ड जिले में माने जाते हों लेकिन यहां की कुछ विशेषताएं भी हैं। मोटे स्तर पर होने वाली संतरे की पैदावार जिले की पहचान बनी हुई है। न सिर्फ मप्र बल्कि देशभर के बड़े शहरों, राज्यों तक यहां का संतरा पहुंचता है। इस संतरे की मिठास देशभर में फैली हुई है।

दरअसल, खास तौर पर सारंगपुर और माचलपुर क्षेत्र में होने वाली संतरे की पैदावार देशभर में ख्यात है। सीजन में यहां से टूटकर जाने वाला संतर कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, मेरठ, जालंधर, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, अलीगढ़, आगरा गुडग़ांव सहित अन्य जगह पहुंचाया जाता है। बड़े और व्यापक स्तर पर होने वाले उत्पादन के दौरान इसकी खरीदारी करने स्थानीय थोक व्यापारियों के साथ ही हरियाणा पंजाब, राजस्थान, नई दिल्ली के खरीदार भी यहां पहुंचते हैं। सीजन में मार्च-अप्रेल के दौरान यहां बड़ी मात्रा में संतरे आते हैं।

 

 

जिले में 20 करोड़ से अधिक का व्यापार

15 किमी के दायरे वाले माचलपुर क्षेत्र में हर बार 10 करोड़ से अधिक की संतरे की पैदावार होती है। अमूमन यही हाल सारंगपुर के हैं, यहां भी यही स्थिति है। 100 फीसदी पैदावार होने के दौरान ऐसे हाल बनते हैं। इस बार 50 फीसदी पैदावार का ही आकलन है उसे भी सही स्थिति में माना जा रहा है। वहीं, भाव अभी से व्यापारियों ने तय कर लिए हैं। खड़ी हुई उपज के बाग में ही 30 से 35 रुपए किलो भाव तय किए गए हैं। यही स्थिति रही तो आने वाले सीजन में 40-50 रुपए तक भी भाव पहुंच सकता है। इसका आखिरी दौर 10 अप्रैल तक का होता है।

शासन भी प्रेरित कर रहा
मोहनपुरा प्रोजेक्ट के तहत जैविक खेती के लिए तैयार नये इनवोटिव खेती में इस तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इसके तहत खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए पपीता, केला के साथ ही संतरे के बगीचे लगाने की योजना भी शासन की है। इससे अंदेशा लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में किसानों को इससे काफी लाभ मिलेगा।

सब्सिडी लें किसान
कोल्ड स्टोरेज का माल इन बड़े शहरों में पहुंचाया जाता है। उद्यानिकी उप संचालक पीआर पांडे कहते हैं कि शासन स्तर पर रकबा हर बार बढ़ रहा है। हम किसानों से भी इसमें सब्सिडी का लाभलेने की अपील करते हैं, उन्हें प्रेरित करते हैं कि आगे से बढ़कर काम करें।

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कोरोना काल में दिक्कत रही है लेकिन इस बार मार्केट में उछाल काफी बेहतर है। सीजन में भाव 40 से 50 रुपए किलो तक भी पहुंच सकते हैं। ऐसा अकसर देखा गया है कि जो अभी का भाव रहता है वह बाद में उत्पादन के हिसाब से बढ़ता ही है। इस बार उत्पादन हमारे यहां आधा है, बाकी जगह भी कम है, इसलिए भाव तेज ही रहने के आसार हैं।
कन्हैयालाल पाटीदार, फल थोक विक्रेता, डूंगरी-माचलपुर

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