Read this also: रास्ते में ही टूट गई तीनों की सांस की डोर, फांकाकसी से लड़ पैदल ही जा रहे थे गांव ठेकेदार छोड़ भाग गया, फांकाकसी को मजबूर मजदूर बोले, नहीं लौटेंगे फिर
शहर में पीएम आवास के निर्माण के लिए ठेकेदार दमोह जिले से करीब सौ मजूदरों को अपने साथ लाया था। लॉकडाऊन में काम बंद हुआ तो ठेकेदार उन्हें उनके हाल पर छोडकर चला गया। घर जाने की अनुमति के लिए मजदूरों ने कई बार कलक्ट्रेट में साहबों से गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इधर, पैसे खत्म होने के साथ राशन भी खत्म हो चुका था। फांकाकसी से बेहतर किसी तरह गांव पहुंचना इन लोगों ने मुनासिब समझा। फिर क्या था, निकल पड़े किसी तरह अपने गांव की ओर। वापस लौटने को मजबूर ये मजदूर जाते जाते कह गए कि चाहे जो हो अब काम के लिए यहां नहीं लौटेंगे।
Read this also: कोई व्हीलचेयर पर निकल पड़ा तो कोई गर्भवती पत्नी को लेकर पैदल जा रहा पटियाला से एमपी में बीस सालों से हैं लेकिन अब नहीं आना चाहते पटियाला पंजाब से भोपाल, होशंगाबाद, रायसेन सहित एमपी के कई जिलों में विभिन्न कृषि यंत्रों को चलाने वाले यहां आए और यहीं के होकर रह गए। सैकड़ों की संख्या में आए इन लोगों में कोई हार्वेस्टर चलाता है तो कोई कुछ। लेकिन लाॅकडाउन के बाद इनका कर्मक्षेत्र इनसे मुंह मोड़ लिया तो अब अपने गांव-जवार की याद आने लगी। भोपाल से पैदल चलकर राजगढ़ पहुंचे जसवीर सिंह, सोमनाथ, गुरमीत सिंह बताते हैं कि वह काम करने हर साल यहां आते हैं। इस बार भी 15 साथियों के साथ आए थे। लाॅकडाउन होते ही सबकुछ बदल गया। ठेकेदार ने काम बंद होते ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। भोपाल से बाहर तक छोड़वा कर अपने तरीके से जाने को बोल दिया। कुछ साधन नहीं मिला तो पैदल ही निकल पडे। रास्तें में कही खाना मिला तो कहीं पानी पीकर काम चला लिया। पिछले दो महीना में जो कमाया था वह सबकुछ काम बंद होने के बाद भोपाल में ही खर्च हो गया। किसी तरह कोशिश है घर पहुंचे। अब हिम्मत नहीं कि दुबारा यहां आया जाए, आगे भगवान मालिक।
देवास से भटिंडा तक सफर के लिए पुरानी साइकिल जुगाड़ी देवास, उज्जैन सहित अन्य जिलों में हार्वेस्टर चलाने आए भटिंडा के ढेर सारे आपरेटर साइकिल का जुगाड़ कर गांवों की ओर निकल पड़े हैं। बीते दिनों राजगढ़ पहुंचने पर इन लोगों ने ‘पत्रिका’ से अपनी पीड़ा साझा करते हुए ऑपरेटर करनेल सिंह, गजराज सिंह, मंदिप सिंह, नायब सिंह, मिलन सिंह ने बताया कि एक महीना तक अभी काम हुआ था कि कामधंधा बंद हो गया। एक महीना में जो बचा खुचा था वह बंदी में खर्च हो गए। फांकाकसी की नौबत न आए इसलिए किसी तरह घर जाने का मन बनाया गया। ये लोग बताते हैं कि सबने रुपये जोड़कर कुछ पुरानी साइकिलें खरीदी और इसी से निकल पड़े हैं गांव की ओर। इन लोगों का कहना है कि इस बार के बेगानेपन को देखते हुए अगली बार आने के पहले दस बार सोचना पड़ेगा।