रायसेन जिला में तैनात सब इंस्पेक्टर साबिर मंसूरी की ड्यूटी रमजान के महीना में कंटेनमेंट एरिया में लगा दी गई। साबितर को गांव की सीमा पर बैैठकर कंटनेमेंट एरिया के नियमों का पालन कराना था। तेज धूप में ड्यूटी के साथ रोजा रखना संभव नहीं था। साबिर ने फर्ज को चुना और रोजा इस बार न रखने का निर्णय लिया। पूरे 25 दिनों तक साबिर लगातार ड्यूटी करते रहे। आज ईद है। गांव भी कंटनेमेंट एरिया से मुक्त हो चुका है। साबिर खुश हैं। उनकी मेहनत रंग लाई। गांव के लोग भी कोरोना की बला टलने से राहत महसूस कर रहे। साबिर कहते हैं कि कोरोना काल सबके लिए मुश्किलों भरा है। सेवा ही सबसे बड़ी इबादत है, वह हम सब कर रहे हैं।
Read this also: मिलिए आत्मनिर्भर एमबीए पास किसान से, किसानी से कमा रहा तीन गुना लाभ रायसेन जिला अस्पताल में रुखसार हुसैन नर्स के रुप से पदस्थ हैं। रोजा शुरु होते ही मन थोड़ा विचिलत हुआ। अस्पताल में कोरोना मरीजों की सेवा के दौरान रोजा रखना थोड़ा मुश्किल काम था। वह बताती हैं कि पहले दिन ड्यूटी लगी तो मन में बहुत डर था, संक्रमित होने का भी खतरा लगा। फिर मां को फोन किया। रुख्सार को उनकी मां ने समझाया कि जिस काम के लिए यह नौकरी चुनी है, उसी काम को करने का मौका खुदा ने दिया है। बिना डरे, अपने फर्ज पर ध्यान दो, यही सबसे बड़ी इबादत है। रुख्सार बताती हैं कि इसके बाद वह बिना डरे सेवा कार्य कर रहीं हैं।
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कोविड केयर सेंटर में नुसरत खान तैनात हैं। नर्सिंग की ड्यूटी के दौरान नुसरत को काफी समय तक पीपीई किट पहनना पड़ता है। इस वजह से तीन दिनों तक बीमार रहीं और अस्पताल में भर्ती भी रहीं लेकिन ठीक होते ही पुनः ड्यूटी ज्वाइन कर लिया। नुसरत बताती हैं कि रमजान में रोजे नहीं रख सकीं लेकिन पूरी शिद्दत के साथ अपनी ड्यूटी करती रहीं। ईद में परिवार से दूर हैं। उनके लिए ईद की सबसे बड़ी खुशी वही होगी जब सभी मरीज ठीक होकर अपने अपने घरों को लौट जाएं।
कोविड केयर सेंटर में नुसरत खान तैनात हैं। नर्सिंग की ड्यूटी के दौरान नुसरत को काफी समय तक पीपीई किट पहनना पड़ता है। इस वजह से तीन दिनों तक बीमार रहीं और अस्पताल में भर्ती भी रहीं लेकिन ठीक होते ही पुनः ड्यूटी ज्वाइन कर लिया। नुसरत बताती हैं कि रमजान में रोजे नहीं रख सकीं लेकिन पूरी शिद्दत के साथ अपनी ड्यूटी करती रहीं। ईद में परिवार से दूर हैं। उनके लिए ईद की सबसे बड़ी खुशी वही होगी जब सभी मरीज ठीक होकर अपने अपने घरों को लौट जाएं।
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बैतुल की अजरा शेख भी ईद पर घर नहीं हैं। पिछले पांच महीना से वह घर नहीं जा सकी हैं और लगातार कोरोना मरीजों के बीच अपने फर्ज को अंजाम दे रहीं हैं। अजरा बताती हैं कि लगातार मास्क पहनने, पीपीई किट पहनने से रोजे के नियमों का पालन करना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने रोजा इस बार नहीं रखा। अजरा बताती हैं कि मरीजों की सेवा का अलग ही सुकून हैं। यह भी अल्लाह की इबादत से कम नहीं है।
बैतुल की अजरा शेख भी ईद पर घर नहीं हैं। पिछले पांच महीना से वह घर नहीं जा सकी हैं और लगातार कोरोना मरीजों के बीच अपने फर्ज को अंजाम दे रहीं हैं। अजरा बताती हैं कि लगातार मास्क पहनने, पीपीई किट पहनने से रोजे के नियमों का पालन करना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने रोजा इस बार नहीं रखा। अजरा बताती हैं कि मरीजों की सेवा का अलग ही सुकून हैं। यह भी अल्लाह की इबादत से कम नहीं है।
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