रायसेन

कई दशकों से ताले में बंद हैं शिव, साल में एक दिन खुलता है मंदिर, जानिए क्यों विवादित है यह स्थान

रायसेन किले के भीतर है ताले में बंद है सोमेश्वर शिव मंदिर, पंडित प्रदीप मिश्रा ने खोलने की मांग की, तो उमा भारती भी जाएंगी जल चढ़ाने…।

रायसेनApr 07, 2022 / 06:41 pm

Manish Gite

रायसेन के इसी किले के भीतर है सोमेश्वर शिवलिंग, जो कई वर्षों से ताले में है।

रायसेन। मध्यप्रदेश के रायसेन में स्थित ऐतिहासिक किला इन दिनों चर्चाओं में आ गया है। चर्चा का कारण इस किले के भीतर शिवजी का मंदिर है। कई दशकों से यह शिवालय ताले में बंद है। सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन 12 घंटों के लिए इसे दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है। इस किले में स्थित सोमेश्वर शिव मंदिर इन दिनों चर्चाओं में आ गया है। इस पर सियासत भी गर्माने लगी है।

 

आइए जानते हैं क्या है इस किले का रहस्य और क्या है शिव मंदिर का विवाद…।

 

 

राजधानी भोपाल से 45 किमी दूर स्थित रायसेन का किला इतिहास की अनूठी कहानी कहता है। 11वीं शताब्दी के आस-पास बने इस किले पर कुल 14 बार विभिन्न राजाओं, शासकों ने हमले किए। तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद भी आज तक यह किला सीना तानकर खड़ा है। यह किला 1500 फीट ऊंची पहाड़ी पर दस वर्ग किमी में फैला है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन किला का निर्माण एक हजार ईसा पूर्व का माना गया है। तब आक्रमणकारियों ने मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था।

 

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साल में एक बार खुलता है मंदिर

इस किले के परिसर में ही एक मंदिर है, जो साल में केवल शिवरात्रि के दिन ही खुलता है। बाकी 364 दिन यह ताले में बंद रहता है। सोमेश्वर धाम मंदिर के प्रति आसपास के श्रद्धालुओं की आस्था है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन हो जाने के बाद इसे ताले में बंद कर दिया गया था। 1974 में नगर के लोगों ने एकजुट होकर मंदिर खोलने और यहां स्थित शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आंदोलन किया था। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने महाशिवरात्रि पर खुद आकर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा कराई थी। तब से हर महाशिवरात्रि पर मंदिर के ताले श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं और यहां विशाल मेला भी लगता है।

 

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इन लोगों ने किया किले पर हमला

: 1223 ई. में अल्तमश
: 1250 ई. में सुल्तान बलवन
: 1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी
: 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी
: 1315 ई. में मलिक काफूर
: 1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक
: 1511 ई. में साहिब खान
: 1532 ई. में हुमायू बादशाह
: 1543 ई. में शेरशाह सूरी
: 1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर
: 1561 ई. में अकबर
: 1682 ई. में औरंगजेब
: 1754 ई. में फैज मोहम्मद

 

किले से जुड़ी अहम घटनाएं

17 जनवरी 1532 ई. को बहादुर शाह ने रायसेन किले का घेराव किया।
6 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया।
10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।
जून 1543 ई. में रानी रत्नावली समेत कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।
जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा किए गए विश्वासघाती हमले में राजा पूरनमल और सैनिकों का बलिदान।

 

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सिक्कों को गलाकर बनाई थी तोपें

इस किले को जीतने के लिए 15वीं सदी में शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवा कर तोपें बनवाई थीं। मालवा की पूर्वी सीमा पर स्थित इस किले को जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था। कहा जाता है तब राजा पूरनमल का राज इस किले पर था।

 

धोखे का शिकार हो गए थे राजा पूरनमल

उल्लेख मिलता है कि दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी 4 माह की घेराबंदी के बाद भी इस किले को नहीं जीत पाया था। जिसके बाद उसने तांबे के सिक्कों को गलवा कर यहीं तोपों का निर्माण किया, तब कहीं जाकर शेरशाह को जीत नसीब हुई। शेरशाह ने इस किले को घेरा तब 1543 ईसवी में यहां राजा पूरनमल का शासन था। वह शेरशाह के धोखे का शिकार हुआ था। जब राजा पूरनमल मालूम पड़ा कि वह धोखे का शिकार हो गया है, तो उसने अपनी पत्नी रत्नावली का स्वयं सिर काट दिया था जिससे वह शत्रुओं के हाथ न लगे।

हजार साल पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

इस किले को लेकर कई किंवदंतियां हैं। इसकी चाहर दीवारी में हर साधन और भवन के कई हिस्से मौजूद हैं। लेकिन, यहां कुछ खास चीजें भी हैं, जो इसे अन्य किलों से इसे अलग करती है। इन्हीं में से उस जमाने का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम। यह सिस्टम देश के अन्य किलों में नहीं दिखती हैं। करीब दस वर्ग किमी में फैले इस किले की पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में जमा होता है। जानकारों का कहना है कि सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

साउंड सिस्टम

यहां बने इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बना ईको साउंड सिस्टम भी अनोखा है। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में यह आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। जबकि दोनों दीवारों के बीच 20 फीट की दूरी है। यह कैसे होता है मतलब ये सिस्टम कैसे काम करता है ये आज भी रिसर्च का विषय है। यहां यह भी खास है कि इस किले में पारस पत्थर होने सहित उसकी रक्षा करने को लेकर भी कई प्रकार की बातें कहीं जाती हैं।

 

9 दरवाजे और 13 बुर्ज

किला बलुआ पत्थर की चट्टान पर ऊंचाई पर खड़ा है। किले के चारों तरफ बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के 9 गेट और 13 बुर्ज हैं। किले की दीवारों में शिलालेख भी हैं।

 

और क्या-क्या है किले में

किला परिसर में बने सोमेश्वर महादेव मंदिर के अलावा यहां हवा महल, रानी महल, झांझिरी महल, वारादरी, शीलादित्य की समाधि, धोबी महल, कचहरी, चमार महल, बाला किला, हम्माम, मदागन तालाब भी मौजूद है।

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