रायसेन

संस्कृत बन रही मल्टीनेशनल लैंग्वेज, थाईलैंड में भी खुमार

थाइलैंड के छात्र कर रहे संस्कृत में एमए, सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय और सांची विश्वविद्यालय के बीच होगा अनुबंध।

रायसेनMar 16, 2018 / 12:03 pm

आसिफ सिद्दीकी

रायसेन। सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय और थाइलैंड के सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय के बीच सहयोग के लिए अनुबंध होने जा रहा है। इसी सिलसिले में सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. सोमबट मंगमेसुकसीरी और हिंदी विभाग के प्रो परामर्थ खाम ने सांची विवि का दौरा किया। व्याख्यान के दौरान उन्होंने बताया कि सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय में 6000 छात्र पढ़ाई करते हैं। इस विश्वविद्यालय में संस्कृत, विज्ञान, फार्मेसी, मैनेजमेंट, कला, पेंटिंग, संगीत, इंटीरियर डिज़ाइनिंग, आर्कियोलॉजी और अन्य विषय पढ़ाए जाते हैं।

दोनों देशो के बीच हुआ समझौता
प्रो. सोमबट ने बताया कि इस अनुबंध के तहत सांची विश्वविद्यालय और सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय के छात्र एक दूसरे के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के विभिन्न विषयों का अध्ययन, शोध आदि का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा दोनों ही विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक एक दूसरे के विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य कर सकेंगे ताकि दोनों देशों के छात्र लाभान्वित हो सकें।

स्पोकन संस्कृत का क्रेज बढ़ा
प्रो. सोमबट के अनुसार थाइलैंड में संस्कृत भाषा, स्पोकन संस्कृत तथा संस्कृत व्याकरण के विषयों को लेकर कई संभावनाएं हैं। उन्होंने बताया कि सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय संस्कृत में एमए और पीएचडी के पाठ्यक्रमों को केंद्र में रखता है, क्योंकि थाइलैंड की 96 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म का पालन करती है। यह आबादी थाई भाषा का उपयोग अपनी दिनचर्या में करती है और थाई भाषा के 50 शब्द मूलत: संस्कृत भाषा से निर्मित हुए हैं।

सिल्पाकोरन में हिंदी
सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय के प्रोण्. परामर्थ खाम के अनुसार उनके विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा भी पढ़ाई जाती है, लेकिन इस विषय पर प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। उनके अनुसार सिल्पाकोरन विश्वविद्यालय इस क्षेत्र में भी सांची विश्वविद्यालय के साथ हाथ मिलाकर आगे बढऩे को तैयार है।

सांस्कृतिक आदान प्रदान
हिंदी के प्रो. परामर्थ के अनुसार भारतीय सांस्कृतिक अनुसंधान परिषद के साथ थाइलैंड के सांस्कृतिक संबंध हैं। जिसके तहत दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, विज़िटिंग प्रोफेसर्स के तौर पर एक-दूसरे के देशों में जाकर कक्षाएं ले सकते हैं, ताकि ज्ञान और संस्कृति का आदान-प्रदान हो सके।

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