आज 27 सितम्बर का दिन पूरी दुनिया में विश्व पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका लक्ष्य पूरी दुनिया में स्थित टूरिस्ट प्लेस को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने की है। इसी दिन पर पढ़ें छत्तीसगढ़ का सिरपुर के मंदिर का इतिहास।
सिरपुर छत्तीसगढ़ का एक एेतिहासिक टूरिस्ट स्पॉट हैं जहां पर लोगों को पौराणिक कथाओं का भंडार और प्राकृतिक छटा दोनों का समान मात्रा में मिश्रण मिलता है। चारो ओर हरियाली के बीच बसा ये एेतिहासिक मंदिर जहां जाते ही दिल को सुकुन मिलता है।
सिरपुर महानदी के तट पर बसा है जिसे छत्तीसगढ़ की गंगा कहा जाता है । इस एेतिहासिक मंदिर की वास्तुकला और इसकी सांस्कृतिक विविधता के लिए यह पूरे देश में मशहुर है। सिरपुर को पहले श्रीपुर के नाम से जाना जाता था जिसे सोमवंशी शासकों के काल में दक्षिण कौशल की राजधानी बनाया गया था।
सिरपुर के इस भव्य मंदिर को छठी शताब्दी में निर्मित भारत की सबसे पहली इंटों से बनी मंदिर होने की ख्याती प्राप्त है। स्थापत्य शैली के साथ-साथ सिरपुर आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान में प्रकाश डालने को भी प्रसिद्ध है।
इतिहास में दर्ज कथाओं के अनुसार, सोमवंश के राजा हर्षगुप्त की रानी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। लगभग ७ फुट ऊंची पाषाण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर अत्यंत ही भव्य है। इस मंदिर में गर्भगृह, मंडप और अंतराल से समावेश हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर विष्णु के प्रमुख अवतार विष्णु लीला के दृश्य भव्य अलंकार प्रतीक आदि का समावेश हैं।
सिरपुर महोत्सव से मिली पहचान
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पहल पर स्थानीय लोगों की मांग पर वर्ष २००६ में सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया गया है। जिससे सिरपुर को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
महोत्सव के बाद से यहां पर पौराणिक उत्खनन पर तेजी आई और उत्खनन के बाद यहां बहुत से पौराणिक शिवलिंग और एेतिहासिक मूर्तियां मिली।