देवउठनी से 4 माह पहले देवशयनी एकादशी मनायी गयी थी जिसकी मान्यता है की भगवान विष्णु उस दिन क्षीर सागर में जाकर सो जाते हैं और यही कारण होता है की इन चार महीनो में किसी भी प्रकार के मंगल कार्य शादी विवाह नहीं होते। और एकादशी आते ही सारे धार्मिक कार्य शुरू हो जायेंगे।
शंखासुर नाम के असुर का वध कर विष्णु जी क्षीर सागर में जाकर अनंत शयन करने लगे और चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी के दिन भगवान् की निद्रा टूटी। देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु जी का पूजन किया।इस तरह से देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत और पूजा का विधान शुरू हुआ। हिन्दू धर्म में इस पूजा के बाद से ही सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं।
विधि तुलसी विवाह (Tulsi Vivah Vidhi) की और देवउठनी के नियम – सुबह सुबह स्नान आदि से निवृत होकर विष्णु जी की पूजा करनी है। और पूजा आपको कुछ इस प्रकार करनी है –
विष्णु जी की मूर्ति को जमीन पर चौका बनाकर पूजा स्थल पर लेटा दें फिर उसके ऊपर डलिया उलट कर ढँक दें फिर उस डलिये को हिलाते हुए उठो देव उठो देव का जाप आपको सात बार करना है फिर डलिया को रख विष्णु जी की मूर्ति को उठाकर सीधा रख दें। अब इनकी पूजा के लिए पंचोपचार या षोडस उपचार पूजन कीजिये इस तरह से देव उठाये जाते हैं। इसके बाद जो भी मांगलिक कार्य आप करना चाहें अपने जीवन में सभी कर सकते हैं।
षोडस उपचार पूजा की PDF इस लिंक पर क्लिक कर डाउनलोड करें तुलसी पूजा के मंत्र (Tulsi Puja Mantra) तुलसी जी को जल चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते। तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते। तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
ॐ सुभद्राय नमः ॐ सुप्रभाय नमः – मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।। इसके अगले दिन व्रत रखने और गरीबों को भोजन दान का बड़ा महत्वा है पुरे साल में 24 एकादशी आती है उसमे से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इसे माना गया है।इस दिन भगवान विष्णु को जगाने की पूजन के बाद शाम के समय तुलसी विवाह का आयोजन जरूर करना चाहिए।
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।। इसके अगले दिन व्रत रखने और गरीबों को भोजन दान का बड़ा महत्वा है पुरे साल में 24 एकादशी आती है उसमे से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इसे माना गया है।इस दिन भगवान विष्णु को जगाने की पूजन के बाद शाम के समय तुलसी विवाह का आयोजन जरूर करना चाहिए।
गन्ने का मंडप फिर तुलसी माता को लाल चुनरी से सजाइये फिर पुरे विधि विधान से और एक छोटे से विष्णु जी की मूर्ति या फोटो या मिटटी के बना लें और फिर दोनों का गठबंधन करना चाहिए।
इस दिन विष्णु, लक्ष्मी और तुलसी जी की पूजा जरूर करें। विष्णु जी को तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाएं। और जिन्होंने व्रत रखा है उन्हें स्वयं पत्ता नहीं तोडना चाहिए। – विष्णुसहस्रनाम : 1000 नामों की महिमा का पाठ जरूर करें। ॐ तुलसाए नमः मंत्र का जाप करें और पूरे परिवार सहित आरती करें।
विष्णुसहस्रनाम : 1000 नामों की महिमा – इस लिंक पर क्लिक कर सीधे PDF डाउनलोड करें – पूजा के बाद या रात में खुद से अगर तुलसी के पत्ते टूटकर गिर जाए तो इसे खाना शुभ माना गया है।
– सुबह आपको देव उठाना है डलिया से फिर शाम को आपको तुलसी विवाह का आयोजन करना है अगले दिन व्रत के साथ गरीब या ब्राह्मण का भोज अवश्य कराएं। इस प्रकार पूरी विधि से की गयी पूजा का शुभ फल आपको जरूर प्राप्त होगा।