भिलाई के गनियारी गांव में जन्मी पद्मभूषण और पद्मश्री तीजनबाई छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं। उनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। तीजनबाई ने न सिर्फ छत्तीसगढ़ सहित भारत में बल्कि देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली महिला कलाकार है। तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।
1988 में पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण मिला
पद्मभूषण और पद्मश्री तीजनबाई को वर्ष 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है।
पद्मभूषण और पद्मश्री तीजनबाई को वर्ष 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है।
तीजनबाई से जुड़ी रोचक बातें
नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखती और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगी। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखती और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगी। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
ये भी जानें
तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।