इधर, रावणभाठा मैदान में असली बैलों के बीच 2 साल बाद दौड़ प्रतियोगिता होने वाली है। कोरोनाकाल में परंपरा का निर्वहन करने के लिए यहां केवल बैलों की पूजा की गई थी। दौड़ नहीं कराई गई थी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने इस बार धूमधाम से प्रतियोगिता कराने की तैयारी की है। आयोजन समिति के अध्यक्ष माधवलाल यादव ने बताया कि मैदान ले जाने से पहले सभी बैलों को सजाया जाएगा। इसमें शामिल होने के लिए आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में किसान अपने बैलों को सजाकर रावणभाठा पहुंचेंगे।
परंपरा को पुनर्जीवित करने 14 साल से करवा रहे स्पर्धा
छत्तीसगढ़ में पोरा पर बैलों को सजाने और दौड़ कराने की परंपरा पुरानी है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसका चलन कम हो गया है। इसे पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने 14 साल पहले रावणभाठा मैदान में बैल दौड़ की शुरुआत की थी। तब से पोरा पर आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में किसान यहां अपने बैलों के साथ जुटते हैं। जीतने वाले बैलों और उनके मालिकों को इनाम के तौर पर हजारों रुपए दिए जाते हैं। 2020 और 2021 में यह प्रतियोगिता कोरोना महामारी के चलते रद्द कर दी गई।
खरीफ की खेती का दूसरा चरण पूरा, इसी खुशी में मनाएंगे पर्व
महामाया मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला बताते हैं कि भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को पोरा खरीफ फसल की खेती का दूसरा चरण (निंदाई-कोड़ाई) पूरा होने की खुशी में मनाया जाता है। किसान बैलों की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बैलों के सहयोग से ही खेती की जाती है। पोरा की पूर्व रात्रि गर्भ पूजन भी किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों मे दूध भरता है। इसी कारण पोरा के दिन किसी को भी खेत में जाने की अनुमति नहीं होती।