जबकि नेहरू मेँडिकल कॉलेज में एक मरीज की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है, जो छुईखदान का रहने वाला है। माइक्रो बायोलॉजी विभाग में पिछले सप्ताहभर में 35 से ज्यादा सैंपलों की जांच हुई है। इसमें 3 की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है। वहां रोज 5 से 6 सैंपलों की जांच की जा रही है।
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इलाज में हो रही देरी
राजधानी समेत प्रदेश के विभिन्न जिलों में जुलाई-अगस्त में स्वाइन फ्लू ने दस्तक दी है। रायपुर में स्वाइन फ्लू का पहला केस जुलाई के पहले सप्ताह में आया था। कांकेर का मरीज एक निजी अस्पताल में भर्ती था। वही 15 दिनों से ज्यादा वेंटिलेटर पर रहा और उसकी जान बच गई। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि उन्हीं मरीजों की मौत हो रही है, जिनकी बीमारी की जांच देरी से हो रही है। इसके कारण इलाज में भी देरी हो रही है। बिलासपुर व राजनांदगांव में जिन मरीजों की मौत हुई है, वे ग्रामीण इलाकों के रहने वाले थे। लंबे समय तक खांसी व सर्दी रहने पर जांच कराई तो स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। बता दे कि डॉक्टरों के अनुसार रिपोर्ट आने के पहले लक्षण के अनुसार मरीजों का इलाज किया जाता है। रिपोर्ट कंफर्म होने के बाद कुछ गाइडलाइन बदल जाती है। मरीजों को टैमी फ्लू टेबलेट देकर इलाज किया जा रहा है। हालांकि बड़े निजी अस्पताल एक्मो मशीन में रखकर मरीज का इलाज करते हैं। वही एक अस्पताल ने इस मशीन में रखकर इलाज के लिए 56 लाख का इस्टीमेट मरीज को दिया है।