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सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं मिला इसलिए यह छात्र अब तक प्रवेश नहीं लिया था। छात्र की किस्मत ऐसी चमकी कि स्पेशल स्ट्रे राउंड दो में उन्हें रायपुर में एमबीबीएस की सीट मिल गई। वहीं निजी कॉलेजों बालाजी, रिम्स, रावतपुरा, अभिषेक व शंकराचार्य की सभी 700 सीटें भी भर गईं। सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटें मापअप राउंड के समय ही भर गईं थीं। वैसे भी एमबीबीएस की सीटें खाली नहीं रहती। तीन साल पहले जरूर सरकारी मेडिकल कॉलेजों की 22 सीटें लैप्स हो गई थीं।
दरसअल तब
दुर्ग कॉलेज को देरी से मान्यता मिली। इसलिए वहां आल इंडिया व सेंट्रल पूल की सीटें खाली रहीं और लैप्स हो गईं। ऐसा ही महासमुंद व कोरबा कॉलेज में हुआ था। इसके बाद या पहले एमबीबीएस की सीटें भरती रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार फिलहाल अगले 10 सालों तक एमबीबीएस की सीटें खाली रहें, इसकी संभावना कम है। सरकारी नौकरी मिलने की गारंटी के साथ प्राइवेट प्रेक्टिस की संभावना के कारण ज्यादातर छात्र डॉक्टर बनना चाहते हैं। यही कारण है कि एक-एक सीट के लिए मारामारी की स्थिति रहती है।