रायपुर

छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर बनने की गाथा, माथे का रक्त तिलक बताता है राज्य निर्माण का संघर्ष

आंदोलनकारियों का वह खून आज 26 साल बाद भी महतारी के माथे पर शोभायमान है। इस तस्वीर में माता के हाथों में धान और हंसिया के अलावा नांगर और त्रिशूल भी नजर आता है। इसके जरिए कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ के साथ यहां माता के प्रति लोगों की अनन्य भक्ति को दर्शाने का प्रयास किया गया है।

रायपुरNov 01, 2022 / 02:05 pm

Sakshi Dewangan

गौरव शर्मा/ छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान सन् 1992 में पहली बार सामने आई थी। आंदोलनकारियों ने 4 भुजाओं वाली इसी महतारी के माथे पर रक्त तिलक लगाकर छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने की सौगंध खाई थी। खून का वह टीका आज भी महतारी के माथे पर शोभायमान है। अभी सरकारी दफ्तरों से लेकर तमाम बड़े कार्यक्रमों में हम महतारी की जो तस्वीर देखते हैं, उसमें भी 30 साल पुरानी उसी पेंटिंग का पुट नजर आता है। छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर बनने की कहानी।

प्रदेश के सभी बड़े आंदोलनिकारियों के खून से शोभायमान मां का माथा
1996 में ही 27 दिसंबर को बिलासपुर के नेहरू चौक में राज्य निर्माण आंदोलनकारियों का बड़ा जलसा हुआ। तब मंच पर रखने के लिए छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर को रायपुर से बिलासपुर ले जाया गया था। इसी दौरान डॉ. केयूर भूषण, डॉ प्रभात मिश्रा, हरि ठाकुर, पुरुषोत्तम लाल कौशिक, नंदकिशोर पांडेय जैसे बड़े आंदोलनकारियों ने छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर अपने रक्त का तिलक लगाकर कसम खाई थी कि छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाकर ही दम लेंगे। आंदोलनकारियों का वह खून आज 26 साल बाद भी महतारी के माथे पर शोभायमान है। इस तस्वीर में माता के हाथों में धान और हंसिया के अलावा नांगर और त्रिशूल भी नजर आता है। इसके जरिए कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ के साथ यहां माता के प्रति लोगों की अनन्य भक्ति को दर्शाने का प्रयास किया गया है।

मां दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती को मिलाकर दिया था रूप
छत्तीसगढ़ महतारी की पहली तस्वीर सन् 1992 में ललित मिश्रा ने बनाई थी। तब वे राज्य निर्माण के लिए बतौर छात्र नेता आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने आजाद छत्तीसगढ़ फौज का भी गठन किया था। छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर जब वे लोगों के बीच पहुंचे तो महसूस किया कि जनता के बीच छत्तीसगढ़ को जीवंत ढंग से प्रस्तुत करने की जरूरत है, ताकि लोगों का इस आंदोलन से भावनात्मक लगाव हो। यहीं से उन्हें पहली बार छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग बनाने का ख्याल आया। रायपुर में वे गोलबाजार से माता लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की तस्वीर लेकर आ गए। फिर इन्हीं तीनों को तस्वीरों को देखकर उन्होंने 5 दिन में ऑइल पेंट पर छत्तीसगढ़ महतारी की पहली तस्वीर को उकेरा।

1996 में इसी पेंटिंग के बैनरतले बंद, रोकी रेल
राज्य निर्माण के लिए रायपुर से लेकर दिल्ली तक कई आंदोलन हुए। लेकिन, 11 मार्च 1996 के आंदोलन को दशकों बाद भी याद रखा जाएगा। दरअसल, राज्य आंदोलनकारियों ने इस दिन 16 जिलों में महाबंद, आर्थिक नाकेबंदी और रेल रोको आंदोलन का शंखनाद किया था। यह आंदोलन मिश्रा द्वारा रचित छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर के बैनर तले ही हुआ था। इस आंदोलन को दशकों बाद भी याद रखा जाएगा। आंदोलन की आग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रायपुर के तात्कालीन एसपी रूस्तम सिंह ने आंदोलनकारियों को रेलवे स्टेशन या रेल पटरी पर देखते ही गोली मारने के आदेश तक दे दिए थे। हालांकि, ऐसी कोई घटना नहीं हुई। हजारों आंदोलनकारियों को गिरफ्तार जरूर किया गया।

आज जिस तस्वीर का इस्तेमाल हो रहा, वह 2017 में फोटोशॉप पर बनी
आज सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ महतारी की जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे 2017-18 में फोटोशॉप के जरिए तैयार किया गया है। इसे कवि ईश्वर साहू बंधी ने तैयार किया है। तस्वीर बनाने की कहानी बताते हुए वे कहते हैं कि वे छत्तीसगढ़ी को भाषा का दर्जा देने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि सोशल मीडिया पर अपने आंदोलन को बेहतर ढंग से लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर की जरूरत है। गूगल पर सर्च किया पर कुछ मिला नहीं तो उन्होंने कुछ ग्राफिक्स डिजाइनर्स से संपर्क किया। बेहतर रिस्पॉन्स नहीं मिलने पर उन्होंने खुद ही फोटोशॉप के जरिए नई तस्वीर बनाई। यह इतना वायरल हुआ कि सरकार ने इसे ही छत्तीसगढ़ महतारी के रूप में स्वीकार कर लिया।

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