रायपुर

वाह! सराबबंदी करे के वादा म का धरे हे

कहे अउ करे म बड़ अंतर होथे। वइसे कहे म का धरे हे। सरकारमन तो कतकोन बछर ले बहुतेच कहत आए हें। कतकोन वादा करिंन, कतकोन घोसना करिंन। जरूरी हे का सबो वादा ल निभाय जाय, घोसनामन ल पूरेच करे जाय। इही ह तो ‘राजनीति’ ए। तभे तो परिवार, समाज, परदेस अउ देस के ‘बारा बजत’ हे।

रायपुरOct 18, 2022 / 04:42 pm

Gulal Verma

वाह! सराबबंदी करे के वादा म का धरे हे

का बात ए वरमाजी! बिहनिया-बिहनिया मुसकावत हस। अतेक काबर इतरावत हस? अइसन का समाचार पढ़ लेच अखबार म। रोज-रोज तो हतिया, डकैती, भरस्टाचार, रिस्वतखोरी, लूटपात, ठगी, दुस्करम, सडक़ दुरघटना अउ आत्महतिया के समाचारेच से भरे रहिथे अखबार ह। कोन से अनहोनी समाचार छपे हे आज। थोकिन महुं ह तो सुनंव। अजी, कुछु बोलबे के नइ। मुंह म का दही जमे हे। अभी तो अतेक जाड़-सीत घलो नइ परत हे। वरमइन ह झल्ला के बोलिस।
अतका सुनिस तहां ले अखबार ले नजर उठावत वरमाजी बोलिस- पढ़े म अनहोनीच समाचार लगथे भागवान। कहिथें के ‘घोड़ा ह कांदी ले दोस्ती कर लिही त खाही का?’ ठीक, अइसनेच बात होवइया हे। सरकार ह काहत हे कि धीरे-धीरे करके सराब दुकानमन ल बंद करे जाही। ये तो ‘उल्टा गंगा बोहाय’ वाले बात होगे। जगा-जगा दुकान खोल के सराब ल खुदे बेचइया ‘सरकार’ ह कहत हावय के सराब दुकान ल कम करबोन। ऐकर से बने समाचार भला अउ का हो सकत हे?
वरमाजी ल बीच म टोकत वरमइन बरस परिस- कहे अउ करे म बड़ अंतर होथे। वइसे कहे म का धरे हे। सरकारमन तो कतकोन बछर ले बहुतेच कहत आए हें। कतकोन वादा करिंन, कतकोन घोसना करिंन। जरूरी हे का सबो वादा ल निभाय जाय, घोसनामन ल पूरेच करे जाय। इही ह तो ‘राजनीति’ ए। तभे तो परिवार, समाज, राज अउ देस के ‘बारा बजत’ हे। सराब दुकान घटे या बढ़े, ऐकर से न सरकार ल कुछु फरक परय अउ न सराबीमन ल। वइसे घलो सरकार अपन राजस्व के घाटा ल कीमत बढ़ा के पूरा कर लेथे अउ सराबीमन के का कहिना, वोमन तो ‘नरक’ ले घलो सराब बिसा के ले आहीं। सराब से खराब तो लइकामन होवत हें। मारपीट तो घरवालीमन से करथें। छेड़छाड़ के सिकार तो नोनीमन होथें। सराबीमन के गारी-गल्ला तो सिधवा मनखेमन सुनथें। जउनमन भुगतत हावंय, वोमन तो भुगतबेच करहीं। वोकरमन के बस भगवाने मालिक हे। सराबीमन के न समाज ह कुछु बिगाड़ सके हे अउ न सरकार ह। ‘सौ बात के एक बात।’ सरकार ल जनता के अतेक चिंता-फिकर हे त चुनई के पहिली करे सराबबंदी के वादा ल काबर नइ निभावत हे। ‘न रइही बांस, न बाजही बंसरी।’
वरमइन के बात ल सुनके वरमाजी के बोलती बंद हो गे। गदहा के सींग बरोबर थोथना के मुस्कान गायब हो गे। तुमा कस नार मुंह लटक गे। लागिस जइसे कोनो ह जोरदार हथौड़ी मार दिस हो। वरमाजी सोच म पर गे। घरवाली एकदमेच सहिच काहत हे। जउन भुगतथेे, तेन जानथे, का होथे सराब अउ कइसे होथे सराबी। ‘धीरे-धीरे सराब दुकानमन बंद होगी’ समाचार पढ़ के खुस होवई ह फालतू हे। काबर के राज के पौने तीन करोड़ जनता के चेहरा म मुस्कान तभे आही, जब सरकार ह चमचम ले सराबबंदी करही। फेर, अइसन होवत नइ दिखत हे, त अउ का-कहिबे।

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