रायपुर

नाटकों के उस्ताद थे हबीब तनवीर, जानिए उनसे जुड़ी कुछ एेसी यादें जो हमेशा साथ रहती हैं

अब नाटक करने के लिए कलाकार नहीं मिलते। हबीब तनवीर नाटकों के उस्ताद थे। जब हबीब तनवीर ही नहीं रहे, फिर फर्क नजर आना स्वाभाविक है।

रायपुरSep 01, 2017 / 05:46 pm

Ashish Gupta

हबीब तनवीर की कुछ एेसी यादें जो हमेशा साथ रहती हैं

राजकुमार सोनी/रायपुर. नया थियेटर और उसके कलाकार काफी पहले भोपाल शिफ्ट हो गए थे, लेकिन यह भी सच है कि पहले और अब की तुलना में काफी बदलाव आ गया है। अब नाटक करने के लिए कलाकार नहीं मिलते। उनकी बेटी नगीन तनवीर ने कहा- मेरे पिता नाटकों के उस्ताद थे। जब उस्ताद ही नहीं रहे, फिर फर्क नजर आना स्वाभाविक है। वैसे भी जो चीज आज है वह कल नहीं रहने वाली। पिता ने जो आखिरी नाटक खेला था वह राजरक्त था। अभी हाल के दिनों में हमने इसका मंचन उत्तराखंड में किया था। बस जैसे-तैसे चल रहा है नया थियेटर। कुछ दिनों पहले रायपुर के इप्टा वालों ने अवगत कराया था कि वे हबीब जी की स्मृति में कोई कार्यक्रम करना चाहते हैं। उन्होंने नया थियेटर की तरफ से नाटक करने को कहा था जबकि मेरा सुझाव था कि पिता के नाटकों के कुछ गीतों को लेकर रंग संगीत प्रस्तुत किया जा सकता है। बात नहीं बन पाई। मैंने फिल्म पीपली लाइव के लिए ‘चोला माटी के राम’ गाया था। इस गीत के बाद कई तरह के प्रस्ताव आए। मैं इस बात पर यकीन नहीं करती कि पिता को केवल उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर ही याद किया जाए। मैं फिलहाल अपने पिता की शायरी और उनके नाटकों को किताब की शक्ल देने में लगी हूं।
 हर गीत बड़े नाटक का विस्तार
एक कला समीक्षक की हैसियत से अपनी खास पहचान रखने वाले राजेश गनौदवाले ने कुछ नाटक भी लिखे हैं। उनके एक नाटक ‘किस्सा ठलहा राम का’ का निर्देशन हबीब तनवीर कर चुके हैं। हबीब के नाटक ‘जादूगर कलाकार’ और ‘हिरमा की अमर कहानी’ में अभिनय कर चुके गनौदवाले फिलहाल तनवीर साहब की रंगयात्रा पर एक किताब लिखने की तैयारी कर रहे हैं। गनौदवाले मानते हैं कि तनवीर की जिंदगी के तीन बड़े पार्ट है। उनका सबसे बड़ा पार्ट है उर्दू में उनकी शेरों-शायरी जिसका जिक्र बहुत कम होता है। दूसरा हिस्सा उनके डायरी लेखन से जुड़ा हुआ है। गनौदवाले का कहना है कि अगर कोई तनवीर के पूरे जीवन को समझना चाहता है तो उसे उनकी पूरी डायरी का अध्ययन जरूर करना चाहिए। गनौदवाले के मुताबिक तनवीर का तीसरा बड़ा पार्ट नाटकों में उनके लिखे हुए गीत भी है जिसकी चर्चा बहुत कम होती है। उनका हर गीत एक बड़े नाटक का विस्तार भी है जिस पर काम करने की जरूरत है।
उनके रचे दृश्य बन जाते थे काव्य
हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित नाटक ‘नंदराजा मस्त है’ में यमराज की परछाई का अभिनय करने वाले अख्तर अली बताते हैं कि तनवीर साहब की मंडली में रविलाल सांगड़े नाम का एक लोक कलाकार था जो संवाद अदायगी के दौरान अटक जाया करता था। पार्टी के कई कलाकारों ने सांगड़े के अटक कर संवाद बोलने पर आपत्ति जताई तो तनवीर ने उसकी इस कमी को ही उपलब्धि में बदल डाला। अख्तर के मुताबिक, तनवीर साहब स्क्रिप्ट के एक-शब्द पर काम करते थे। वे हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि गीत ही नहीं संवाद में भी लय होना चाहिए। उन्होंने भारतीय रंगमंच को यह बताया कि नाटक पढ़े जाने के बजाय अगर बोले जाने की भाषा में लिखे जाये तभी सफल होते हैं। नाटक में लेखक नहीं, बल्कि पात्र की भाषा महत्वपूर्ण होती हैं। तनवीर के नाटकों की एक खास बात यह भी थी कि वे कविताओं से दृश्य निकालते थे और दृश्य फिर ‘काव्य’ की शक्ल अख्तियार कर लेते थे।
Theater Artist Habib Tanvir
तनवीर घराने को बचाना जरूरी
इन दिनों बस्तर बैंड के संचालक हैं अनूपरंजन पांडे, लेकिन तनवीर के साथ उनकी रंगयात्रा काफी लंबी है। तनवीर के नाटक मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त, चरणदास चोर में पुरोहित, आगरा बाजार में बेनीप्रसाद, राजरक्त में नक्षत्र राय और देख रहे हैं नयन में एक तांगेवाले का किरदार अदा कर चुके अनूप का मानना है कि तनवीर के नाटकों में एक वैश्विक दृष्टि थी, जिसके चलते विदेशों में भी मंचन के दौरान दर्शकों के समक्ष भाषा की दिक्कत नहीं होती थी। उनका नाटक जब भी विदेशों में खेला जाता था, तो दर्शक पात्रों से गले लगकर रोते थे और खुश होते थे। वे अगर संस्कृत भाषा का नाटक भी खेलते थे, तो भी उसमें एक फोर्स नजर आता था। अनूप का कहना है कि फिलहाल हबीब का नया थियेटर लडख़ड़ाते हुए चल रहा है, लेकिन ङ्क्षहदी समाज को उसे संरक्षित करने की जरूरत है। तनवीर का काम अपने आप में एक घराने का काम है। इस घराने को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अनेक हिस्सों में तनवीर स्टडी सर्कल, तनवीर वीथिका, तनवीर पीठ- अकादमी की स्थापना होनी चाहिए।
एक से एक कलाकार बिछड़े सभी बारी-बारी
तनवीर के नाटकों में सबसे बढिय़ा कौन सा कलाकार है यह कहना थोड़ा मुश्किल है। विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक चरणदास चोर के वैसे तो हजारों मंचन हुए हैं। इस नाटक की सबसे खास बात यह रही है कि इसके चोर बदलते रहे हैं। नाटकों में रुचि लेने वालों को कभी मदन निषाद का काम पंसद आता रहा तो कभी रामलाल निर्मलकर और चैतराम का। समीक्षकों की राय रही है कि चोर की भूमिका में सबसे ज्यादा फिट गोविंदराम निर्मलकर ही रहे हैं। खुद हबीब तनवीर ने एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया था कि गोविंदराम आत्मविश्वास से भरे हुए बेजोड़ एक्टर है। बहरहाल संगीत नाटक अकादमी और पदमश्री से सम्मानित गोविंदराम निर्मलकर का निधन हो गया। तनवीर की पार्टी के सशक्त कलाकार ठाकुर राम, भुलवा राम, लालू राम, शिवपाल देवसाय, फिदाबाई, मालाबाई, बृजलाल लेंझवार, रामचरण निर्मलकर और चैतराम यादव के कामकाज की भी अब यादें शेष रह गई है। नाटक चरणदास चोर के एक प्रमुख कलाकार दीपक तिवारी विराट भी इन दिनों पक्षाघात के शिकार है जबकि ओंकार दास मानिकपुरी ने आमिर खान की फिल्म पीपली लाइव में काम करने के बाद थियेटर से नाता तोड़ लिया है।

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