एमआईएस-सी जैसी गंभीर बीमारी से बच्चों को बचाने राज्य स्तर पर अब तक कोई अलर्ट जारी नहीं किया गया है। स्थानीय स्तर पर भी दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। देश के कई राज्यों में एमआईएस-सी (MIS-C) के मामले सामने आ चुके हैं। कई मौतें भी चुकी है। प्रदेश में भी कोरोनाकाल में इस बीमारी से 30 से ज्यादा बच्चे पीड़ित हो चुके हैं। राहत की बात है कि अब तक एक भी मृत्यु नही हुई है। प्रदेश में कोरोना की पहली लहर के बाद से ही एमआईएस-सी के केसेस सामने आने लगे थे। दूसरी में इनकी संख्या बढ़ी है और आने वाले दिनों में इसके और भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि एमआईएस-सी की बीमारी शून्य से लेकर 21 साल तक के बच्चों में हो सकती है। कोरोना की पहली लहर में जो बच्चे संक्रमित होकर ठीक हो गए और यह बीमारी नही हुई, उन्हें सुरक्षित माना जा सकता है। लेकिन, पहली लहर में संक्रमण से ठीक हुए बच्चे दूसरी लहर में भी किसी कारणवश संक्रमित हुए है तो उसे बीमारी हो सकती है।
बच्चों की परेशानी को न करें नजरअंदाज
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में कोरोना के बाद सामने आ रहे लक्षणों को परिजन नजरअंदाज न करें। बच्चों का सही समय पर इलाज नही होने से दिल की मांसपेशियां ढीली हो जाती है। एंटीबॉडी अधिक बनने से शरीर के कई अंग प्रभावित होने लगते हैं। कोरोना से ठीक हो चुके बच्चों में यह बीमारी ज्यादा होती है। इसके लक्षण कोविड-19 जैसे ही होते हैं।
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रायपुर एम्स के प्रभारी कोविड वार्ड व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल जिंदल ने कहा, शून्य से 21 वर्ष के बच्चों में यह बीमारी संभव है। कोरोना से ठीक हो चुके बच्चों में यह बीमारी ज्यादा होती है। कोरोना की पहली लहर के बाद दूसरी में भी बच्चा संक्रमित हुआ है तो उसमें भी एमआईएस-सी बीमारी हो सकती है।
रायपुर जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. निलय मोझरकर ने कहा, बहुत से बच्चे पहली के बाद दूसरी लहर में भी संक्रमित हुए हैं। कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। बच्चों को सही समय पर इलाज मिलने पर वह जल्द ही ठीक हो जाते हैं।
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स्वास्थ्य विभाग व संचालक महामारी नियंत्रक कार्यक्रम के प्रवक्ता डॉ. सुभाष मिश्रा ने कहा, बच्चों में एमआईएस-सी होने की जानकारी मिली हैं। प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज में पीडियाट्रिक आईसीयू उपलब्ध है, इसलिए इसके लिए अलग से व्यवस्था करने की जरूरत नही है। बच्चों में पहले भी यह बीमारी होती थी लेकिन अब थोड़ी बढ़ गई है।