राजेन्द्र सिंह दीवान बताते हैं, 1795 में सोनाखान में जमींदार परिवार में जन्मे वीरनारायण सिंह में अपनी रियासत के प्रति प्रेम कूट-कूट कर भरा था। उनके परिवार के पास 300 गांवों की जमींदारी थी। उनके पिता राम राय भी लोगों में काफी लोकप्रिय थे। राम राय के समय से ही सोनाखान में आजादी के नारे गूंजने लगे थे। उन्होंने 1818 अंग्रेज कैप्टन मैक्स से युद्ध लड़ा था। युद्ध इतना भीषण हुआ कि मैक्स और उसकी सेना को मैदान छोड़ना पड़ा। 1830 में उनके देहांत के सोनाखान की जमींदारी वीरनारायण के हाथों में आ गई।
राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि करीबी रिश्तेदार व कटंगी के जमींदार ने कैप्टन स्मिथ को बताया कि वीर नारायण सिंह सोनाखान में है। स्मिथ ने एक दिसंबर को पूरे सोनाखान के घरों में आग लगवा दी। दो दिसंबर को वीर नारायण सिंह को फिर से अंग्रजों ने पकड़ लिया। वीर नारायण सिंह (Shaheed Veer Narayan Singh Sonakhan) को अंग्रेज पकड़कर रायपुर लाए और राजद्रोह का आरोप लगाकर कोर्ट में पेश किया। जज ने 10 दिसंबर को फांसी देने का फैसला सुनाया। उन्हें जहां फांसी दी गई, वो जगह आज के राजभवन के सामने शहीद वीरनारायण सिंह चौक पर है। वंशज राजेन्द्र सिंह के अनुसार वीर नारायण सिंह के शव को अंग्रेजों ने जेल परिसर में 6 दिन तक फांसी लटकाकर रखा। 7वें दिन जयस्तंभ चौक पर तोप से उड़ा दिया।
गुरिल्ला युद्ध के लिए 500 लोगों की सेना
28 अगस्त 1857 को अंग्रेजों के भारतीय सैनिक व स्थानीय लोगों ने वीर नारायण सिंह को जेल से मुक्त करवा दिया और अपना नेता मान लिया। उन्होंने 500 लोगों की बंदूकधारी सेना बनाई। उनकी गुरिल्ला युद्ध में माहिर सेना ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों की ओर से कैप्टन स्मिथ उनसे लड़ रहे थे।
सोनाखान पर कब्जा नहीं जमा सके फिरंगी
वीरनारायण सिंह… सिंह ने 1856 के अकाल के दौर से जुड़ी यादों को साझा करते हुए बताया कि अंग्रेज न तो सोनाखान पर कब्जा कर पाए और न ही वीरनारायण पर हाथ डाल सके। अकाल ने अंग्रेजों को स्वर्णिम अवसर दे दिया। अनाज के लिए जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। अंग्रेजों के समर्थक जमींदारों के गोदाम अनाज से भरे थे, लेकिन जनता दाने-दाने को मोहताज थी। वीर नारायण से लोगों की पीड़ा देखी नहीं गई। उन्होंने गोदाम लूटकर अनाज गरीबों में बंटवा दिया। अंग्रेज और जमींदारों की मिलीभगत से साजिश के तहत अंग्रेजों ने 24 अक्टूबर 1856 को वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
रिश्तेदार की मुखबिरी से पकड़े गए
राजेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं कि करीबी रिश्तेदार व कटंगी के जमींदार ने कैप्टन स्मिथ को बताया कि वीर नारायण सिंह सोनाखान में है। स्मिथ ने एक दिसंबर को पूरे सोनाखान के घरों में आग लगवा दी। दो दिसंबर को वीर नारायण सिंह को फिर से अंग्रजों ने पकड़ लिया। वीर नारायण सिंह को अंग्रेज पकड़कर रायपुर लाए और राजद्रोह का आरोप लगाकर कोर्ट में पेश किया। जज ने 10 दिसंबर को फांसी देने का फैसला सुनाया। उन्हें जहां फांसी दी गई, वो जगह आज के राजभवन के सामने शहीद वीरनारायण सिंह चौक पर है। वंशज राजेन्द्र सिंह के अनुसार वीर नारायण सिंह के शव को अंग्रेजों ने जेल परिसर में 6 दिन तक फांसी लटकाकर रखा। 7वें दिन जयस्तंभ चौक पर तोप से उड़ा दिया।