रायपुर के पहले बड़े अस्पताल की बात करें तो साल 1944 में दाऊ कल्याण सिंह ने 25 हजार रुपए खर्च कर सिल्वर जुबली अस्पताल बनवाया। आज इसे डीकेएस मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल नाम से जाना जाता है। 60 के दशक में पं. जवाहरलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज की नींव रखी गई, तो जूनियर डॉक्टर डीकेएस में ही इंटर्न करते थे। उस जमाने में भी मरीज इतने होते कि बहुतों को बिस्तर नसीब नहीं होता था। मरीज जमीन पर लेटे रहते थे। आंबेडकर अस्पताल 90 के दशक में आया। इस समय तक भी शहर में उतने ज्यादा हॉस्पिटल नहीं थे। मेडिकल सर्विसेज़ का विस्तार राज्य गठन के आसपास हुआ जब देश की नामी-गिनामी संस्थाएं रायपुर में आने लगीं। 2013 में एम्स के आने के बाद शहर तेजी से मेडिकल हब के रूप में स्थापित हुआ है।
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आज राजधानी में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले हॉस्पिटलों की चेन है। इन्होंने अपने इलाज के दम पर रायपुर की ऐसी पहचान बनाई है कि आज देश ही नहीं, विदेशों से भी लोग यहां आ रहे हैं। अगले कुछ सालों में ही कई और बड़े हॉस्पिटल यहां आने वाले हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सेवा के मामले में रायपुर पर लोगों का भरोसा और बढ़ेगा। विश्वास
17 देश दिल का इलाज करवाने हम पर निर्भर दिल के इलाज में बड़ा सेंटर बनकर उभरे नवा रायपुर के सत्य साईं हॉस्पिटल में 17 देश नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नाइजीरिया, फिजी, युगांडा, बारबाडोस, यमन, उज्बेकिस्तान, कैमरून, लाइबेरिया, यूथोपिया, तंजानिया, केन्या, इराक, अफगानिस्तान से लोग अपने बच्चों का इलाज कराने पहुंच रहे हैं।
17 देश दिल का इलाज करवाने हम पर निर्भर दिल के इलाज में बड़ा सेंटर बनकर उभरे नवा रायपुर के सत्य साईं हॉस्पिटल में 17 देश नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नाइजीरिया, फिजी, युगांडा, बारबाडोस, यमन, उज्बेकिस्तान, कैमरून, लाइबेरिया, यूथोपिया, तंजानिया, केन्या, इराक, अफगानिस्तान से लोग अपने बच्चों का इलाज कराने पहुंच रहे हैं।
मरीज बढ़े
10-12 राज्यों से भी लोग नियमित पहुंच रहे रायपुर में इलाज करवाने वाले ज्यादातर छत्तीसगढ़ के ही हैं, ये मानना गलत है। छत्तीसगढ़ 7 राज्यों से घिरा है। लेकिन, जानकार हैरानी होगी कि रायपुर में इलाज के लिए 10 से ज्यादा राज्यों के लोग नियमित रूप से पहुंच रहे हैं। मध्यप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश, केरल व पूर्वोत्तर राज्यों के मरीज शामिल हैं।
10-12 राज्यों से भी लोग नियमित पहुंच रहे रायपुर में इलाज करवाने वाले ज्यादातर छत्तीसगढ़ के ही हैं, ये मानना गलत है। छत्तीसगढ़ 7 राज्यों से घिरा है। लेकिन, जानकार हैरानी होगी कि रायपुर में इलाज के लिए 10 से ज्यादा राज्यों के लोग नियमित रूप से पहुंच रहे हैं। मध्यप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश, केरल व पूर्वोत्तर राज्यों के मरीज शामिल हैं।
काफी सुधार कैडेवर ट्रांसप्लांट को मंजूरी, 11 को नई जिंदगी प्रदेश ने प्राथमिक सामुदायिक केंद्र से मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल तक का सफर पूरा कर लिया है। स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार हुआ है और सुविधाओं में विस्तार भी हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कैडेवर डोनेशल एक्ट को 1994 में तंजूर किया था। देर आए दुरुस्त आए। छत्तीसगढ़ ने 2022 में इसे मंजूरी दी और 1 साल में ही कैडेवर ट्रांसप्लांट से 11 लोगों को नई जिंदगी मिल चुकी है। फिलहाल प्रदेश के 10 बड़े अस्पतालों में कैडेवर ट्रांसप्लांट की मंजूरी है, लेकिन आने वाले दिनों में इनकी संख्या में और इलाज होगा और लोगों के लिए सुविधाएं भी बढ़ेगी।
नंबरों में काम 06 लाख लोग देशभर से हर साल एम्स में पहुंच रहे 7510 ऑपरेशन एम्स में 2021-22 में, 22- 23 में 10 हजार 17 देशों के लोग सत्य साईं पहुंच रहे दिल का इलाज कराने के लिए
26 हजार बच्चों की हार्ट सर्जरी कर चुका साईं अस्पताल 2.50 लाख लोग सत्य साईं की ओपीडी में पहुंचे 11 साल में 1.50 लाख गर्भवतियों का इलाज, 1 हजार डिलीवरी भी
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एक्सपर्ट व्यू कैंसर-कार्डियक के इलाज में बहुत काम बाकी रायपुर में लगभग सभी तरह की गंभीर बीमारियों का इलाज हो रहा है। लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां अब भी बहुत काम करने की जरूरत है। कैंसर डेडिकेटेड हॉस्पिटल खुलने से इलाज के लिए बाहर जाने वाले मरीजों की संख्या में कमी जरूर आई है। लेकिन, लोगों के मन में आज तक ये मान्यता स्थापित नहीं हो पाई है कि कैंसर का अच्छा इलाज रायपुर में भी हो सकता है। कार्डियक के इलाज में भी बहुत काम होना बाकी है। दिल से जुड़ी गंभीर बीमारी का इलाज कराने के लिए आज भी बड़ा वर्ग महानगरों का मुंह देखता है। उम्मीद है कि आने वाले समय में हम इनके इलाज में भी अपनी नई पहचान स्थापित करेंगे।
नर्सिंग ऑफिसर व पैरामेडीकल स्टाफ की कमी रायपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास तो काफी तेजी से हो रहा है। लेकिन, नर्सिंग ऑफिसर और पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी भी बड़ी समस्या है। यह सम्मानजनक पेशा है। इसके बावजूद युवा इस फील्ड को गंभीरता से नहीं ले रहे। रोजगार की अनंत संभावनाओं के साथ यह लोगों का जीवन बचाने वाला पेशा है, इसलिए भी युवाओं को इस सेक्टर में आना चाहिए। पैरामेडिकल स्टाफ के राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग की व्यवस्था नहीं है। ये भी एक बड़ी वजह है कि राज्य के अस्पतालों में अन्य राज्यों के लोग अधिक हैं।