डीकेएस अस्पताल अक्टूबर 2018 में शुरू किया गया। तब से डायग्नोस्टिक सेंटर को ठेके पर दिया गया है। यह ठेका 10 साल के लिए है। यानी 2028 तक डायग्नोस्टिक सेंटर ठेके पर चलता रहेगा। आंबेडकर अस्पताल के रेडियो डायग्नोसिस विभाग में 3 प्रोफेसर, इतने ही एसोसिएट प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसर यानी 9 कंसल्टेंट डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं। तीन सीनियर रेसीडेंट भी है, जो एमडी की डिग्री ले चुके हैं। इसके अलावा 4 रजिस्ट्रार भी हैं। इनमें दो ने सोनोग्राफी का प्रशिक्षण भी लिया है।
2018 में कंसल्टेंट की लगभग यही स्थिति थी। प्रोफेसर तीन के बजाय दो थे। जब डीकेएस में डायग्नोस्टिक सेंटर पीपीपी मोड पर दिया गया, तो सवाल तो उठे, लेकिन रसूखदार डॉक्टर होने के कारण किसी ने विरोध नहीं किया। तब आंबेडकर अस्पताल प्रबंधन डीकेएस की डायग्नोस्टिक सेंटर को चलाने के लिए तैयार था। यही नहीं आंबेडकर अस्पताल में ब्लड जांच के लिए पैथोलॉजी, बायो केमेस्ट्री व माइक्रो बायोलॉजी लैब भी है। यहां रोजाना 5 हजार से ज्यादा सैंपलों की जांच हो रही है। हालांकि रीएजेंट की कमी के कारण जांच प्रभावित होती रही है। अभी सिम्स के रीएजेंट के भरोसे ब्लड जांच हो रही है।
सस्ती जांच के नाम पर वसूल रहे ज्यादा पैसे
रायपुर डायग्नोस्टिक सेंटर सस्ती जांच का ढिंढोरा पीटकर मरीजों से ज्यादा पैसे वसूल रहा है। उदाहरण के लिए आंबेडकर अस्पताल में सीटी एंजियोग्राफी के लिए 5500 रुपए लगता है। जबकि, डीकेएस में 8300 रुपए वसूल रहे हैं। जबकि यही जांच एक चैरिटी डायग्नोस्टिक सेंटर में 6 हजार रुपए में हो रही है। एमआरआई व सीटी स्कैन जांच में ज्यादा पैसे लेने की शिकायत मरीजों ने की है। वेंडर ने एक जांच शुल्क का एक ब्रोशर भी छपवाया है। इससे ज्यादा शुल्क लेने पर मरीज काउंटर में शिकायत करते हैं तो स्टाफ द्वारा यह कहा जाता है कि इसमें दूसरी जांच भी शामिल है।
एमआरआई मशीन देरी से लगाई लेकिन वेंडर पर नहीं लगा जुर्माना
रायपुर डायग्नोस्टिक सेंटर को अस्पताल शुरू होने के पहले एमआरआई मशीन लगानी थी, लेकिन 2019 में मशीन लगाई गई। समय पर मशीन नहीं लगाने पर वेंडर को तगड़ा जुर्माना भरना था, लेकिन फूटी कौड़ी पेनाल्टी नहीं लगाई गई। तब अस्पताल प्रबंधन के बड़े अधिकारी वेंडर पर मेहरबान थे। अभी भी डॉक्टरों की गलत रिपोर्टिंग की शिकायत पर प्रबंधन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार गलत रिपोर्टिंग अक्षम्य है।