हटकेश्वर महादेव: 500 साल से लगातार जल रही अखंड धुनि
खारुन नदी के किनारे महादेवघाट पर लगभग 600 साल पुराना हटकेश्वर महादेव का मंदिर है। वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि 1402 ईस्वी में कल्चुरि राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के शासन काल में हाजीराज नाइक ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था। उज्जैन के महाकाल के दर्शन करने का जो महत्व है, छत्तीसगढ़ में हटकेश्वरनाथ शिवलिंग के दर्शन का भी वही महात्म्य माना गया है। यहां अखंड धुनि है जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह लगातार 500 साल से जल रही है।
खारुन नदी के किनारे महादेवघाट पर लगभग 600 साल पुराना हटकेश्वर महादेव का मंदिर है। वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि 1402 ईस्वी में कल्चुरि राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के शासन काल में हाजीराज नाइक ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था। उज्जैन के महाकाल के दर्शन करने का जो महत्व है, छत्तीसगढ़ में हटकेश्वरनाथ शिवलिंग के दर्शन का भी वही महात्म्य माना गया है। यहां अखंड धुनि है जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह लगातार 500 साल से जल रही है।
सरोना: पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए दूर-दराज से आते हैं भक्त
सरोना में दो तालाबों के बीच लगभग 250 साल पुराना शिव मंदिर है। कई इतिहासकारों का ऐसा दावा है कि दोनों तालाब मंदिर के नीचे से आपस में जुड़े हैं। बताया जाता है कि 14 गांव के मालिक स्व. गुलाब सिंह ठाकुर को संतान नहीं थी। जूनागढ़ अखाड़े से आए नागा साधु ने उन्हें तालाब खुदवाने और शिव मंदिर बनवाने कहा। इससे ठाकुर को 2 पुत्र की प्राप्ति हुई। इसी मान्यता के चलते लोग दूर-दराज से यहां पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। गर्भगृह में शंकरजी की प्रतिमा पर फन काढ़े पांच नाग भी आकर्षक नजर आते हैं।
बूढ़ेश्वर महादेव: उज्जैन की तरह होती है भस्म आरती
बूढ़ातालाब करीब 500 साल पहले बना था। पास में स्थापित बूढ़ेश्वर महादेव शिवलिंग की कहानी भी इतनी ही पुरानी है। जानकार बताते हैं कि 500 साल पहले राजा ब्रह्मदेव ने बूढ़ातालाब खुदवाया था। इसी तालाब के पास शिवलिंग पर नाग लिपटे रहते थे। तब मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना की गई। उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर यहां भी हर सोमवार भगवान की भस्म आरती की जाती है। 1905 से पुष्टिकर ब्राह्मण समाज इस मंदिर का संचालन और देखरेख कर रहा है।
बूढ़ातालाब करीब 500 साल पहले बना था। पास में स्थापित बूढ़ेश्वर महादेव शिवलिंग की कहानी भी इतनी ही पुरानी है। जानकार बताते हैं कि 500 साल पहले राजा ब्रह्मदेव ने बूढ़ातालाब खुदवाया था। इसी तालाब के पास शिवलिंग पर नाग लिपटे रहते थे। तब मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना की गई। उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर यहां भी हर सोमवार भगवान की भस्म आरती की जाती है। 1905 से पुष्टिकर ब्राह्मण समाज इस मंदिर का संचालन और देखरेख कर रहा है।
नरहरेश्वर महादेव: शहर के 3 पुराने मंदिरों में से एक है
सिद्धार्थ चौक पर नरैया तालाब के किनारे बना नरहरेश्वर महादेव का मंदिर बेहद आकर्षक नजर आता है। यह शहर के तीन सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। पहला महादेवघाट पर हटकेश्वर महादेव का मंदिर। दूसरा पुरानी बस्ती में मां महामाया और तीसरे नंबर पर आता है नरहरेश्वर महादेव मंदिर। इन तीनों का निर्माण लगभग 600 साल पहले हुआ था। जानकार बताते हैं कि जब यह मंदिर बना, तब इसके आसपास काफी घना जंगल हुआ करता था। 200 साल पहले तक भी यहां कम श्रद्धालु ही आते थे।
सिद्धार्थ चौक पर नरैया तालाब के किनारे बना नरहरेश्वर महादेव का मंदिर बेहद आकर्षक नजर आता है। यह शहर के तीन सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। पहला महादेवघाट पर हटकेश्वर महादेव का मंदिर। दूसरा पुरानी बस्ती में मां महामाया और तीसरे नंबर पर आता है नरहरेश्वर महादेव मंदिर। इन तीनों का निर्माण लगभग 600 साल पहले हुआ था। जानकार बताते हैं कि जब यह मंदिर बना, तब इसके आसपास काफी घना जंगल हुआ करता था। 200 साल पहले तक भी यहां कम श्रद्धालु ही आते थे।