श्रद्धालुओं को धन्यवाद देते हुए पं. मिश्रा ने कहा कि धन्य हैं छत्तीसगढ़ के लोग जिनका शिव महापुराण के प्रति अटूट विश्वास है। अधिक मास सावन के बीच जल वृष्टि के बाद भी पहले दिन की कथा से दोगुने भक्त शिव की भक्ति करने पहुंचे हैं। मैं सभी भक्तों का नमन करता हूं। निवेदन भी करता हूं कि जलवृष्टि के चलते वे अपने साथ छाता, पॉलिथीन वाली पन्नी और एक जोड़ी कपड़ा लेकर आए हैं। क्यों कि अति जलवृष्टि के कारण जमीन गीली है। जमीन पर पॉलिथीन रखकर कथा का श्रवण करें। बारिश से बचने छाता लाए हैं। यदि कोई भक्त भींग जाता है तो कपड़े बदल लेगा। महाराज ने भक्तों से कहा कि हो सके तो वे घर में ही टीवी के माध्यम से कथा का श्रवण करें। पं. मिश्रा ने कहा कि शंकर भगवान का चरित्र विश्वास का चरित्र है, जिस दिन अगर शिवजी के प्रति भाव अथवा भरोसा जागृत ना हो सके तो आप शिव महापुराण में जाना, उसके बाद अगर विश्वास और भरोसा जागृत होया, तारेगा भी महादेव और मारेगा भी महादेव तो आपका कल्याण हो जाएगा। महादेव आपको कभी डूबने नहीं देगा, उस पर सच्चा विश्वास होगा तो वह हाथ पकड़ कर खींच कर बाहर कर देगा।
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कथावाचक ने कहा कि हर व्यक्ति को किसी न किसी पर भरोसा रहता है, एक नौकर कहता है कि मेरा सेठ है, जब मेरे घर में विवाह या कोई मौका आएगा तो मेरा सेठ मुझे पैसा दे देगा और मेरे बच्चों का विवाह निपट जाएगा। एक व्यक्ति को भरोसा रहता है कि मेरे पास सोने के गहने घर में रखे हुए हैं। जरूरत पड़ने पर मैं इसे गिरवी रख कर अपने काम को निपटा लूंगा बच्चों का विवाह भी हो जाएगा। लेकिन शिव महापुराण की कथा कहती है शिव जी को आपसे न बेल पत्र चाहिए न चावल का दाना चाहिए। शंकर भगवान को आपसे कुछ भी नहीं चाहिए, शिवजी तो कहते हैं मैं भी भगवान के नाम में डूबा रहता हूं। तुम भी परमात्मा के नाम में डूबे रहो मैं तुम्हारा सब कार्य करके चले जाऊंगा। तुम आश्रित हो जाओ और भगवान के भरोसे जीना प्रारंभ कर दो। उन्होंने कहा कि हम दुनिया के भरोसे पर जीते हैं। पर परमात्मा के भरोसे नहीं जी पाते, हम उसके आश्रित नहीं हो पाते, कभी ऐसा भी होता है कि हमारा पुण्य भी पाप में बदल जाता है। कथा के बीच में कथा वाचक प्रदीप मिश्रा ने कुछ पत्रों का उल्लेख करते हुए बताया कि कुछ माताओं ने उन्हें पत्र भेजा है। उनमें से कुछ पत्रों को मिश्रा ने भक्तों को पढ़कर सुनाया। उनमें से एक भरोसे का बड़ा मार्मिक पत्र काटाभांजी उड़ीसा की रहने वाली मीना यादव द्वारा भेजा गया था। बुधवार की कथा में मीना यादव स्वयं मौजूद थीं। पत्र में मीना ने महाराज को लिखा था कि मेरी बेटी को कैंसर हो गया था, पूरा घर चिंतित था उनका इलाज रायपुर में कराया संजीवनी अस्पताल में। कई दिनों तक इलाज हुआ लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा, तब मुझे कुछ लोगों ने कहा कि दोपहर को टीवी में सीहोर वाले बाबा की कथा आती है। मैंने कथा सुनी जिसमें बाबा ने कथा में बताया गया कि शिव पर भरोसा रखें, सभी समस्याओं का हल होगा। मैंने शिवजी पर एक लोटा जल चढ़ाना शुरू किया मेरी बेटी के गले में कैंसर था वह न खा सकती थी न पी सकती थी ठीक हो गया।
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उन्होंने कहा यह शरीर किसका है, कई रोगों से ग्रसित होने के बाद भी हम समझते कि अपना है, बड़ा रोग होने पर समझ लेना कि नदी जब उफान पर आती है तो खतरे के निशान तक पहुंच जाती है। खतरे के निशान तक अगर नदी पहुंचती है तो गांव के डूबने की आशा हो जाती है। इसीलिए नदी खतरे के निशान पर आए तो मकान को जल्दी खाली कर गांव को खाली करवा दिया जाता है। उसी प्रकार चलते चलते जब जीवन में रोग बढ़ते चले जाएं बीमारियां और तकलीफ बढ़ती चली जाएं तो समझ ले कि नदी अब खतरे के निशान तक पहुंच गई है। सबसे चतुरता का काम करना, मकान खाली कर देना, मकान खाली करने का मतलब अपने दिल से लोभ मोह ऋण सबका त्याग कर देना। खाली मकान में शंकरजी को विराजमान कर देना। अपने हृदय में शिव को विराजमान कर देना।