हालांकि राज्य सरकार की तरफ से आज दिनांक तक प्लाज्मा डोनेशन को लेकर कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। न ही इसे कारगर बताया गया। यहां तक की सरकारी अस्पताल में प्लाज्मा डोनेशन हो रहे हैं कि नहीं यह स्थिति भी स्पष्ट नहीं है। मगर, रायपुर जिला प्रशासन से अगस्त-सितंबर में कई जरुरतमंदों की तरफ से प्लाज्मा डोनेशन से संबंधित जानकारी के लिए संपर्क किया गया।
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जिसके बाद कलेक्टर डॉ. एस. भारतीदासन ने अपनी टीम से चर्चा कर निर्णय लिया कि जिला प्रशासन खुद स्वस्थ हो चुके कोरोना मरीजों से संपर्क करेगा, उनकी सहमति पर प्लाज्मा डोनेशन करने वालों की सूची बनाई जाएगी, ताकि किसी को जरुरत पड़े तो वे भटके नहीं। सीधे डोनेशन के लिए सहमति देने वालों से संपर्क कर सकें।
सरकार के पास प्लाज्मा डोनेशन से संबंधित रेकॉर्ड नहीं
शहर के निजी अस्पतालों में 2 ढाई महीने से प्लाज्मा डोनेशन के जरिए मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी दी जा रही है। मगर, स्वास्थ्य विभाग के पास इसका कोई रेकॉर्ड नहीं है। विभाग को यह तक नहीं पता कि कितने मरीज इस थैरेपी से स्वस्थ हुए और कितने नहीं।
प्लाज्मा डोनेशन से शरीर को नुकसान नहीं
‘पत्रिका’ ने प्लाज्मा डोनेट करने वाले शहर के 5 से अधिक लोगों से संपर्क किया। इनमें से हर एक का यही कहना था कि उन्हें कोई शारीरिक कमजोरी महसूस नहीं हुई। थकावट, सिरदर्द, बदन दर्द जैसी कोई शिकायत भी नहीं है। इनका कहना है कि यह ठीक ब्लड डोनेशन जैसा ही है। बस इसमें थोड़ा वक्त लगता है। इनमें तो दो कई 2-2 बार डोनेशन कर चुके हैं। गौरतलब है कि एक व्यक्ति से 200 एमएल प्लाज्मा ही लिया जाता है।
ऐसे मरीज जिन्हें प्लाज्मा की जरुरत है, उनके परिजन भटके नहीं, इसलिए प्रशासन ने डोनेशन की सहमति देने वाली की सूची तैयार करवाई है। जरुरतमंदों को 4 स्वस्थ हो चुके लोगों के नाम दिए जाते हैं। दोनों पक्ष आपस में बात कर लें। इससे ज्यादा जिला प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है।
-गौरव सिंह, सीईओ, जिला पंचायत रायपुर