रायपुर

Online Game: छात्रों के लिए जहर बन रहा ऑनलाइन गेम, खेल का एडिक्शन इतना की साइबर ठग का शिकार हो रहें लोग

Online Game: रायपुर शहर में ऑनलाइन गेम खेलना स्कूल-कॉलेज के छात्रों के लिए धीमा जहर बन रहा है। विद्यार्थियों के अलावा अब इसमें युवा वर्ग भी अपना अधिक समय बीता रहा है।

रायपुरSep 28, 2024 / 12:16 pm

Shradha Jaiswal

Online Game: छत्तीसगाह के रायपुर शहर में ऑनलाइन गेम खेलना स्कूल-कॉलेज के छात्रों के लिए धीमा जहर बन रहा है। विद्यार्थियों के अलावा अब इसमें युवा वर्ग भी अपना अधिक समय बीता रहा है। इसका एडिक्शन तेजी से बढ़ रहा है। इससे कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो रही है। चिड़चिड़ापन, तनाव, अवसाद और खुदकुशी के लिए प्रेरित होने जैसी समस्याएं सामने आ रही है।
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Online Game: मॉनीटरिंग का कोई सिस्टम नहीं

Online Game: बिलासपुर के कोटा इलाके में कुछ दिन पहले 16 वर्षीय छात्र ने इसी के चलते खुदकुशी कर ली थी। पूरे प्रदेश में ऑनलाइन गेम को लेकर शिकायतें भी बढ़ने लगी हैं। साइबर क्राइम में ऑनलाइन गेमिंग से रिलेटिड 0.52 फीसदी शिकायतें सामने आई है। ये आंकड़े साल पूरा होते-होते और बढ़ने की आशंका है। उल्लेखनीय है कि ऑनलाइन गेम बनाने वालों की टीम में साइकोलॉजिस्ट भी रहते हैं। गेम को ऐसे बनाया जाता है कि लोगों को इसकी लत लगे। वे बार-बार गेम खेलते रहे। ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में लोग ऑनलाइन ठगी के शिकार भी हो रहे हैं।

Online Game: आने लगी हैं शिकायतें

प्रदेश में जनवरी से जुलाई 2024 तक होने वाले कुल साइबर क्राइम की शिकायतों में 0.52 फीसदी मामले ऑनलाइन गेबलिंग से जुड़ा है। ऑनलाइन गेमिंग की शिकायतें पहले नहीं आती थी। अब आने लगी है। अब तक साइबर क्राइम के 16 हजार 800 से ज्यादा शिकायतें पुलिस को मिल चुकी है।
ऑनलाइन गेमिंग के चलते विद्यार्थियों और युवाओं के व्यवहार में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। चिड़चिड़ापन, तनाव, अग्रेसन, डिप्रेशन जैसी चीजें ज्यादा दिख रही है। साइकोलॉजिस्टों के मुताबिक मोबाइल के ऑनलाइन गेम एडिक्शन लगाने वाले होते हैं। इस ढंग से बनाया जाता है कि एक बार खेलने वाला बार-बार इसे खेलना चाहता है। इसमें रिवार्ड, स्कोर बनाने के चक्कर में नाबालिग और युवा वर्ग ज्यादा खेलते हैं। इसके लिए रिचार्ज पैकेज भी रहते हैं। इसके जरिए ऑनलाइन गेमिंग और गेम ऐप बनाने वाले करोड़ों रुपए कमा रहे हैं।
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व्यवहार में हो रहा परिवर्तन

ऑ नलाइन गेम बनाने वाले साइकोलॉजिस्ट की भी मदद लेते हैं। वे गेम को इस तरह बनाते हैँ कि खेल का अंत नहीं होता है। इसमें लेवल बढ़ते जाते हैं। खेलने से एडिक्शन बढ़ता है। एडिक्शन होने पर दूसरे काम-काज में मन नहीं लगता है। व्यवहार में काफी परिवर्तन दिखता है। चिड़चिड़ापन, तनाव, डिप्रेसन जैसी समस्याएं सामने आती हैं। परिजनों को अपने बच्चों के व्यवहार पर नजर रखना चाहिए। थोड़ा से बदलाव होने पर उनके मोबाइल की जांच करनी चाहिए।

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