सर्वेक्षण रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के बाद पड़ोसी ओडि़सा का नंबर है, जहां 17 प्रतिशत घर झुग्गी हैं। इस सूची में 14 प्रतिशत के साथ झारखंड तीसरे स्थान पर और 12 प्रतिशत झुग्गियों वाला तमिलनाडु चौथे स्थान पर हैं। बिहार में भी एेसे घरों की संख्या 11 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश में कुल घरों का केवल 9 प्रतिशत हिस्सा झुग्गी माना गया है। दुनिया के सबसे बड़े स्लम क्षेत्र में शुमार धारावी जैसी बस्तियों वाले महाराष्ट्र में केवल एक प्रतिशत घर झुग्गी हैं।
जबकि दिल्ली में एेसे घर केवल पांच प्रतिशत तक हैं। झुग्गियों में रहती है राजधानी की 51 फीसद आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक रायपुर की 51 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहती है। यानी 10 लाख 10 हजार लोगों में से 5 लाख 16 हजार लोग। एक गैर सरकारी रिपोर्ट बताती है, रायपुर में 282 झुग्गी बस्तियां हैं, जिनमें 87 हजार से अधिक परिवार रहते हैं।
2030 तक सूरत बदलने की चुनौती
इस मामले में छत्तीसगढ़ का शीर्ष पर होना चिंताजनक माना जा रहा है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब यह पता चलता है कि इस रिपोर्ट में झुग्गियों का राष्ट्रीय औसत कुल घरों का केवल पांच प्रतिशत तक है। रिपोर्ट कहती है कि 2016 में घोषित सतत् विकास लक्ष्य 2030 को पाने के लिए स्लम को बदलना होगा। लोगों को पर्याप्त सुरक्षित, किफायती रहवास और मूलभूत सुविधाएं देने के लिए निरंतर काम करने वाला तंत्र , नीति और कार्यक्रम बनाना होगा।
इस मामले में छत्तीसगढ़ का शीर्ष पर होना चिंताजनक माना जा रहा है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब यह पता चलता है कि इस रिपोर्ट में झुग्गियों का राष्ट्रीय औसत कुल घरों का केवल पांच प्रतिशत तक है। रिपोर्ट कहती है कि 2016 में घोषित सतत् विकास लक्ष्य 2030 को पाने के लिए स्लम को बदलना होगा। लोगों को पर्याप्त सुरक्षित, किफायती रहवास और मूलभूत सुविधाएं देने के लिए निरंतर काम करने वाला तंत्र , नीति और कार्यक्रम बनाना होगा।
इस वजह से बढ़ी दिख रही संख्या
एनएसएसओ कहता है कि किसी क्षेत्र में अस्थायी और कच्ची सामग्री से बने कम से कम 20 घरों का समूह जो एक दूसरे से सटे हुए हों और वहां घरों में शौचालय, पीने का साफ पानी और भूमिगत जलनिकाली प्रणाली नहीं हो स्लम है। जनगणना के लिए 60-70 घरों वाले एेसे ही क्षेत्र को स्लम कहा गया है। अब छत्तीसगढ़ के अधिकांश घर कच्ची सामग्री, खपरैल और मिट्टी से बने हैं। एेसे में यहां की स्लम आबादी बड़ी दिख रही है।
एनएसएसओ कहता है कि किसी क्षेत्र में अस्थायी और कच्ची सामग्री से बने कम से कम 20 घरों का समूह जो एक दूसरे से सटे हुए हों और वहां घरों में शौचालय, पीने का साफ पानी और भूमिगत जलनिकाली प्रणाली नहीं हो स्लम है। जनगणना के लिए 60-70 घरों वाले एेसे ही क्षेत्र को स्लम कहा गया है। अब छत्तीसगढ़ के अधिकांश घर कच्ची सामग्री, खपरैल और मिट्टी से बने हैं। एेसे में यहां की स्लम आबादी बड़ी दिख रही है।
किफायती मकान बड़ी चुनौती
नदी-घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंद्योपाध्याय ने कहा कि रिपोर्ट में परिभाषा की समस्या के बावजूद सतत् विकास लक्ष्य में सबको सुरक्षित और सस्ता मकान दिलाना बड़ी चुनौती है। इस पर खरा उतरने के लिए स्पष्ट नीति, प्रशासनिक चुस्ती के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। अभी के परिदृश्य में एेसा होता दिख नहीं रहा है। जब तक बदलाव में जनभागीदारी नहीं बढ़ाएंगे, नीति के अनुसार बजट आवंटन नहीं होगा तब तक हालात में बदलाव संभव नहीं दिखता।
नदी-घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंद्योपाध्याय ने कहा कि रिपोर्ट में परिभाषा की समस्या के बावजूद सतत् विकास लक्ष्य में सबको सुरक्षित और सस्ता मकान दिलाना बड़ी चुनौती है। इस पर खरा उतरने के लिए स्पष्ट नीति, प्रशासनिक चुस्ती के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। अभी के परिदृश्य में एेसा होता दिख नहीं रहा है। जब तक बदलाव में जनभागीदारी नहीं बढ़ाएंगे, नीति के अनुसार बजट आवंटन नहीं होगा तब तक हालात में बदलाव संभव नहीं दिखता।