जिला प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक जल्द ही जांच के लिए टीम निकलेगी। ऐसा पहली बार नहीं है दिवाली के दो से तीन दिन पहले हर साल टीमें निकलती है, लेकिन टीम के पास ऐसा कोई उपकरण नहीं रहता, जिससे पटाखों की गुणवत्ता और ध्वनि प्रदूषण की मात्रा को मापा जा सके। यह जांच के लिए सिर्फ एक्सप्लोसिव विभाग के पास इसके लिए उपकरण है, लेकिन जांच टीम में विभाग से कोई सदस्य ही नहीं शामिल किया जाता। दीपावली में सिर्फ छह दिन बचे हैं फिर भी जांच शुरू नहीं हो पाई है।
यह है एनजीटी का निर्देश
रक्षा मानकों और ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए त्योहार के पहले एनजीटी ने पटाखों की बिक्री को लेकर निर्देश जारी किया है। इसके अनुसार ऐसे पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंधित है जो चार मीटर से अधिक दूरी तक 125 डेसीबल पटाखा का शोर करे। राजधानी की पटाखा दुकानें भारी मात्रा में स्टॉक भर गया है, लेकिन जांच शुरू नहीं हो पाई है। अभी तक चुनाव की वजह से अभी तक टीम नहीं बन पाई है।
गली-मोहल्ले में सज गई दुकानें
राजधानी में पटाखे की तकरीबन 150 स्थायी व अस्थायी दुकानें सज गई हैं। जिले में गली-मोहल्लों में अवैध रूप से पटाखों की दुकानों से पटाखों की खरीदी-बिक्री शुरू हो गई है। 40 स्थायी लाइसेंसी पटाखा दुकानें हैं। दिवाली त्योहार पर जिलेभर में सैकड़ों अवैध पटाखा दुकानें सज जाती हैं, लेकिन उनकी जांच के लिए टीमें नहीं बनाई गई है। नियमों का पालन नहीं करने पर एसडीएम को कार्रवाई का अधिकार है।
क्यूआर कोड नदारद
पिछले साल की भांति इस साल भी बाजार में नीरी का चिन्ह लगाकर सामान्य पटाखों की ही बिक्री हो रही है। (नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) नीरी के मानदंडों के मुताबिक निर्मित ग्रीन पटाखे पर रसायनिक तत्त्वों की जानकारी देने के लिए क्यूआर कोड रखा जाता है। इस क्यूआर कोड को अपने मोबाइल की सहायता से स्कैन कर निर्माण रसायन और सामग्री के बारे में जानकारी मिलती है, लेकिन बाजार में बिक्री होने वाले पटाखों में क्यूआर कोड मौजूद ही नहीं है। शहर में सभी छोटी और बड़ी दुकानों में पटाखों पर नीरी का स्टीकर लगा कर धड़ल्ले से बिक्री हो रही है।
क्या होते है ग्रीन पटाखे
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इन्स्टिटयुट) की ओर से साल 2018 में तीन श्रेणी में ग्रीन पटाखों को तैयार किया है। इनमें स्वास, स्टार सफल के रूप में अनार, फुलझड़ी और पटाखे को तैयार किया था। इन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट को पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया गया है, जबकि एल्युमिनियम, सल्फर और पोटेशियम नाइट्रेट के भी प्रयोग को कम किया है। इन ग्रीन पटाखों की बदौलत आक्साइडस आफ नाइट्रोजन सल्फर, सल्फर डाइआक्साइड समेत धूलकाों के प्रभाव को 30 फीसदी तक कम किया है।
टीम बनाई जा रही है। दो दिनों में पटाखा दुकानों की जांच शुरू हो जाएगी। पर्यावरण विभाग को टीम में शामिल किया जाएगा, जिससे पटाखों की जांच की जा सके।
– एनआर साहू, एडीएम रायपुर