इन्होंने सेल्फ ड्राइविंग कार का एक प्रोटोटाइप बनाया है। खास बात ये है कि इसमें एकमात्र विजन कैमरे का इस्तेमाल किया गया है। दूसरी सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले लिडार, रडार जैसे महंगे और जटिल सेंसर के मुकाबले यह काफी सस्ता है। जबकि, ड्राइविंग इंटेलीजेंस उन्हीं के बराबर है। यह कंप्यूटर विजन और डीप लर्निंग एल्गोरिदम पर काम करता है। देवांगन ने बताया, इस शोध में कंप्यूटर विजन तकनीक के साथ कन्वोल्यूशन न्यूरल नेटवर्क को डिजाइन और विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य पहले सड़क, लेन मार्किंग, स्पीड ब्रेकर और गड्ढों की पहचान कर ड्राइविंग का उचित निर्णय लेना है। अप्रत्याशित यातायात स्थितियों के कारण भारत में फिलहाल सेल्फ ड्राइविंग कारों को पूरी तरह लॉन्च नहीं किया गया है। ऐसे में विभिन्न स्मार्ट शहरों में ऐसे वाहन के विकास और अनुसंधान की संभावना महत्वपूर्ण है जो कैमरा आधारित तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कम खर्चीले हैं। उनकी इस खोज को 12 से अधिक प्रतिष्ठित इंटरनेशनल जर्नल और कॉन्फ्रेंस में जगह मिली है।
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जानिए सेल्फ ड्राइविंग कारों का इतिहास
दुनियाभर में सेल्फ ड्राइविंग कारों पर रिसर्च 1920 से हो रही है। पहली सेमी सेल्फ ड्राइविंग कार 1977 में जापान में बनी। कानूनी तौर पर सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां पहली बार 2020 में अमेरिका के एरिजोना राज्य की राजधानी फिनिक्स में चलाई गईं।