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बेटों को आज भी प्राथमिकता मोना कहती हैं, ‘आज भी लड़की और लड़के में अंतर किया जाता है। बेटियों को आगे बढ़ने के लिए सही माहौल नहीं मिल पाता। इसलिए मैंने मिशन (Mona sen) की शुरुआत की। जब मैंने अपनी वेबसाइट में संकल्प पत्र भरवाना शुरू किया था, तो महज पांच दिन में ही 60 हजार लोगों ने फॉर्म भर दिया था। यह एक रेकॉर्ड था।’ गांव में बेटियों की हालत देख हुई दुखी Mona Sen’s campaign: प्रदेश के सैकड़ों गांवों में जाया करती थी। मैं यह देखकर दंग रह जाती थी कि कोई नाबालिग मांग में सिंदूर लगाए बैठी है, तो कुछ बच्चियां मां बन चुकी हैं। यह देखकर मेरा मन दुखी हो जाता था। इसलिए मैं मौके पर ही लोगों को जागरूक किया करती थी। इसके बाद मैंने इस मुहिम की प्लानिंग की। -मोना सेन