मस्जिद में पढ़ा करते थे नातिया-मुशायरा
अवध में उर्दू घुली-मिली है। यहां का माहौल ऐसा है कि पैदाइशी तौर पर इस जुबान की ओर झुकाव होता है। हालांकि मैं पुरोहित के घर से हूं जहां संस्कृत और हिंदी का माहौल था। पास में ही मस्जिद थी। वहां मैं नातिया मुशायरा भी पढ़ता था। मिलाद में भी शिरकत करता था। इसलिए मुझे उर्दू में कभी दिक्कत नहीं आई। सीखने में प्रॉब्लम नहीं आई, लिखना-पढऩा नहीं आता था, जिसे मैंने 12वीं के दौरान सीख ली।इसलिए लिखा मुंतशिर
मुंतशिर मेरा पेड नेम है। मुझे एक यूनिक पेडनेम चाहिए था, उर्दू शायरी का रिवाज है कि एक पेड नेम होता ही है। साहिर, मजरूह, फिराक और फैज भी पेड नेम ही हैं। मैं चाहता था कि दुनिया में किसी का पेड नेम ऐसा न हो। ये वो दौर था जब हर दूसरा शायर साहिर या सागर था। मुंतशिर मतलब बिखरा हुआ, कांच की तरह टूट कर बिखरा हुआ नहीं बल्कि खूशबू और रोशनी की तरह बिखरा हुआ।मुंबई में सिर्फ टैलेंट चलता है
मुंबई एक ऐसी माशुका की तरह है जिससे बरसों एक तरफा मोहब्बत करनी पड़ती है, और फिर कहीं जाकर वो आपकी तरफ नजरें उठाकर देखती है। 1 साल तीन महीने मैं फुटपाथ पर ही रहा। अमिताभ बच्चन से मिलने गया तो भी मैं सेकंड हैंड जूते और कपड़े पहनकर गया। जिन भिखारियों के साथ मैं फुटपाथों पर सोया करता था उनसे मैंने उधार लिए। किसी ने 20 तो किसी ने 25 रुपए दिए। 230 रुपए इक_ा कर मैंने मार्केट से सेकंड हैंड जूते व कपड़े खरीदे। लेकिन ये दुखदाई कहानी नहीं है। ये एस्प्रेशन की कहानी है जो साबित करती है कि आपमें पैशेंस है तो आप नाकाम नहीं होंगे। दुनिया में कहीं भी पैसा, रस्म, पॉवर और सरनेम चल जाता हो लेकिन मुंबई में सिर्फ टैलेंट चलता है। वर्ना मेरे जैसा कोई किसाान का बेटा जिसकी 7 पुश्तों ने मुंबई का मुंह नहीं देखा वो आज जिस मुकाम में है इससे साबित होता है कि मुंबई में नेपोटिज्म नहीं बल्कि टैलेंट का बोलबाला है।
जब बच्चन ने मेरा लिखा पढ़ा तो मैं जज्बाती हो गया
स्टार प्लस के लिए एक शो यात्रा लिख रहा था। उसी दौरान कुछ लाइने बच्चन सर तक पहुंची। वे मुझसे मिलना चाहते थे। मुलाकात होती है। उन्होंने केबीसी लिखने कहा। मैंने लिखा और रातों-रात मेरी जिंदगी बदल जाती है। जब बिगबी ने मेरी लाइनें पढ़ीं तो मैं काफी जज्बाती हो गया और आंखों से आंसू निकल आए। मैं सोच रहा था कि कभी मैं इनकी फिल्में देखकर गाने लिखने का सोचा करता था आज वे मेरी लाइनें पढ़ रहे हैं।जमकर पढें क्योंकि पढऩा भरना है, लिखना छलकना है
नवोदित लेखकों के लिए मनोज ने कहा कि पहले जमकर पढें क्योंकि पढऩा भरना है, लिखना छलकना है। जब तक आप भरेंगे नहीं आप छलकेंगे नहीं। मुश्किल ये है कि हम बगैर पढ़े यह मान लेते हैं कि लिख लेंगे। इसलिए आपको कोई बैंचमार्क नहीं मिलता। अच्छी चीज ये है कि अपना मयार ऊपर रखें। आप ये देखें कि आपसे पहले क्या-क्या लिखा जा चुका है। किस स्तर की पोएट्री और शायरी हुई है। जब आप अपना टेस्ट बड़ा कर लेंगे, फिर खुद को उसी में आंकेंगे। फिर आप खराब लिखेंगे तो उसे फाड़कर फेंक देंगे। अगर आपने बहुत ज्यादा पढ़ा ही नहीं है तो जो भी लिख देंगे वही अच्छा लगने लगेगा। आप इतना पढ़ लें कि अपनी चीजें खराब लगने लग जाएं।