रायपुर

Lok Sabha Election 2024: घर के अलावा गली, खेत-खलिहान तक पहुंचकर वोट मांग रहे प्रत्याशी

Election 2024; सरगुजा का एक प्रत्याशी रविवार के दिन स्थानीय चौपाटी में पहुंचकर प्रचार किया तो एक प्रत्याशी ढोल बजाते नजर आया।

रायपुरApr 21, 2024 / 09:29 am

Shrishti Singh

Lok Sabha Chuunav 2024: छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। चुनाव में खड़े प्रत्याशियों ने प्रचार-प्रसार भी तेज कर दिया है। वे हाईटेक प्रचार के साथ-साथ मतदाताओं की गलियों को नापने लगे हैं। चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार तरह-तरह के जतन कर रहे हैं। इसके तहत उन्हें जहां प्रचार का मौका मिल रहा है, वो पहुंच रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार मतदाताओं से सपंर्क करने के लिए उनकी कर्मभूमि तक पहुंचने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आया है, जब प्रत्याशी मनरेगा का काम कर रहे श्रमिकों के बीच और महुआ बिन रही महिलाओं के बीच जाकर उनके साथ वक्त बिता रहे हैं।
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लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी सोशल मीडिया में अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। पिछले दिनों रायपुर लोकसभा क्षेत्र के एक प्रत्याशी मनरेगा श्रमिकों के बीच पहुंचकर श्रमिक न्याय गारंटी योजना की जानकारी दी। वहीं कोरबा लोकसभा की एक प्रत्याशी ने सोशल मीडिया में अपना एक वीडियो साझा किया। इसमें वो अपनी कार से उतरकर महुआ बिनने वाली महिलाओं के बीच जाकर अपने पक्ष में प्रचार करती नजर आ रही थीं। सरगुजा का एक प्रत्याशी रविवार के दिन स्थानीय चौपाटी में पहुंचकर प्रचार किया तो एक प्रत्याशी ढोल बजाते नजर आया।

इसलिए हो रहा यह प्रयास
विधानसभा की तुलना में लोकसभा का क्षेत्र काफी बड़ा होता है। यदि छत्तीसगढ़ की बात करें तो 9 लोकसभा क्षेत्रों में आठ-आठ विधानसभा की सीट आती है। वहीं रायपुर और दुर्ग लोकसभा का क्षेत्र बाकी से थोड़ा बड़ा है। इन दोनों लोकसभा क्षेत्र में नौ-नौ विधानसभा की सीट शामिल हैं। जबकि क्षेत्र के हिसाब से प्रत्याशियों के पास प्रचार के लिए कम समय मिलता है। यही वजह है कि प्रत्याशियों को जहां मौका मिलता है, वो प्रचार में जुट जाते हैं।

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क्या बदल पाएंगे वोट में
प्रत्याशियों की यह रणनीति चुनाव में वोट बदलने में कितनी सफल होती है, यहां कहना अभी मुश्किल है, लेकिन शहरी क्षेत्र के मतदाता प्रत्याशियों के जतन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शहरी क्षेत्र के मतदाताओं का मन बदलना आसान नहीं होता है। वो प्रत्याशी और पार्टी देकर अपना वोट पहले से तय कर लेते हैं। ठीक इसके विपरीत ग्रामीणों क्षेत्रों में इसका आंशिक असर होता है। दरअसल, मतदाताओं को भी यह बात अच्छे से पता है कि प्रत्याशियों के चुनाव जीतने के बाद वे बिना निमंत्रण ऐसे किसी भी स्थान पर नहीं जाएंगे। पांच साल तक मतदाताओं को ही उनके पास जाना होगा।

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