रायपुर

10 साल पुराने मदनवाड़ा नक्सली कांड की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित, एसपी विनोद चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी हुए थे शहीद

न्यायमूर्ति शंभुनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोग गठित, जांच आयोग खोलेगा 10 साल पुराने मदनवाड़ा कांड के पन्ने।

रायपुरJan 19, 2020 / 05:49 pm

CG Desk

रायपुर . छत्तीसगढ़ सरकार ने राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा के पास 12 जुलाई 2009 में हुए नक्सली हमले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया है। इस हमले में राजनांदगांव जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। यह पहला मामला था जिसमें पुलिस का कोई एसपी स्तर का अधिकारी नक्सलियों के हमले में शहीद हुआ हो। एसपी विनोद कुमार चौबे को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है।
इस घटना की एफआईआर मानपुर थाने में दर्ज हुई थी, लेकिन अभियान को लेकर तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों पर सवाल उठते रहे हैं। सरकार का कहना है कि घटना के 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी सार्वजनिक महत्व के अनेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अब भी भ्रम की स्थिति है। इसको दूर करने के लिए न्यायिक जांच आयोग जरूरी है। सामान्य प्रशासन विभाग ने शनिवार को आयोग के गठन की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कर दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश न्यायमूर्ति शंभुनाथ श्रीवास्तव को जांच का जिम्मा दिया है। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ प्रमुख लोकायुक्त रह चुके हैं। आयोग को 6 महीेने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सितम्बर 2019 में शहीद एसपी विनोद चौबे की पत्नी रंजना चौबे की मांग पर आयोग के गठन की घोषणा की थी।

मदनवाड़ा में उस दिन क्या हुआ था
अफसरों के मुताबिक 12 जुलाई 2009 को मदनवाड़ा कैंप से बाहर निकले जवानों पर माओवादियों ने घात लगाकर हमला किया। इसमें दो जवान शहीद हो गए। घटना की सूचना तक तत्कालीन एसपी विनोद चौबे अपने साथ कुछ और जवानों को लेकर मदनवाड़ा कैंप के लिए निकले। महका पहाड़ी में कारेकट्टा और कोरकोट्टी गांवों के बीच यह दल भी माओवादियों के एम्बुश में फंस गया। यहां पर एसपी सहित 25 पुलिसकर्मी शहीद हुए।

इन बिंदुओं पर केंद्रित रहेगा आयोग
1. यह घटना किन परिस्थितियों में हुई थी।
2. क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था।
3. क्या सुरक्षा की निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था।
4. किन परिस्थितियों में एसपी और अन्य सुरक्षाबलों को उस अभियान में भेजा गया।
5. एसपी व जवानों के एम्बुश में फंसने पर क्या अतिरिक्त बल उपलब्ध कराया गया, अगर हां तो स्पष्ट करना है।
6. मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच।
7. सुरक्षाबलों के जवान किन परिस्थितियों में मरे अथवा घायल हुए।
8. घटना से पहले, उसके दौरान और बाद के मुद्दे जो उससे संबंधित हों।
9. क्या राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच समुचित समन्वय रहा है।

इसको दूर करने के लिए न्यायिक जांच आयोग जरूरी है। सामान्य प्रशासन विभाग ने शनिवार को आयोग के गठन की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कर दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश न्यायमूर्ति शंभुनाथ श्रीवास्तव को जांच का जिम्मा दिया है। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ प्रमुख लोकायुक्त रह चुके हैं। आयोग को 6 महीेने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सितम्बर 2019 में शहीद एसपी विनोद चौबे की पत्नी रंजना चौबे की मांग पर आयोग के गठन की घोषणा की थी।

मदनवाड़ा में उस दिन क्या हुआ था
अफसरों के मुताबिक 12 जुलाई 2009 को मदनवाड़ा कैंप से बाहर निकले जवानों पर माओवादियों ने घात लगाकर हमला किया। इसमें दो जवान शहीद हो गए। घटना की सूचना तक तत्कालीन एसपी विनोद चौबे अपने साथ कुछ और जवानों को लेकर मदनवाड़ा कैंप के लिए निकले। महका पहाड़ी में कारेकट्टा और कोरकोट्टी गांवों के बीच यह दल भी माओवादियों के एम्बुश में फंस गया। यहां पर एसपी सहित 25 पुलिसकर्मी शहीद हुए।

इस हमले में इनकी भी हुई थी शहादत
निरीक्षक विनोद ध्रुव, उप निरीक्षक धनेश साहू, उप निरीक्षक कोमल साहू, प्रधान आरक्षक गीता भंडारी, प्रधान आरक्षक संजय यादव, प्रधान आरक्षक जखरियस खलखो, आरक्षक रजनीकांत, आरक्षक लालबहादुर नाग, आरक्षक निकेश यादव, आरक्षक वेदप्रकाश यादव, आरक्षक श्यामलाल भोई, आरक्षक बेदूराम सूर्यवंशी, आरक्षक लोकेश छेदैया, आरक्षक अजय भारद्वाज, आरक्षक सुभाष बेहरा, आरक्षक रितेश देशमुख, आरक्षक मनोज वर्मा, आरक्षक अमित नायक, आरक्षक टिकेश्वर देखमुख, आरक्षक मिथलेश साहू, आरक्षक प्रकाश वर्मा, आरक्षक सूर्यपाल वट्टी, आरक्षक झाडूराम वर्मा, आरक्षक संतराम साहू, प्रधान आरक्षक दुष्यंत राठौर और सुंदरलाल चौधरी।

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