रायपुर

सुधा भारद्वाज की वजह से अनेक नौकरशाहों पर लटक रही तलवार

सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं द्वारा 2007 के दौरान की गई सात निरीह आदिवासियों की हत्या और उनके घरों को जलाने के मामले में सुधा भारद्वाज अनेक सरकारी अधिकारियों के लिए मुसीबत बनी हुई थी।

रायपुरAug 29, 2018 / 03:41 pm

Ashish Gupta

सुधा भारद्वाज की वजह से अनेक नौकरशाहों पर लटक रही तलवार

आवेश तिवारी/रायपुर. सुकमा में सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं द्वारा 2007 के दौरान की गई सात निरीह आदिवासियों की हत्या और उनके घरों को जलाने के मामले में सुधा भारद्वाज अनेक सरकारी अधिकारियों के लिए मुसीबत बनी हुई थी। उनकी वजह से राज्य के लगभग एक दर्जन नौकरशाह मानवाधिकार आयोग के निशाने पर हैं। महत्वपूर्ण है कि सुकमा के कोंडासावली में हुए इस मामले में न तो मृतकों का पोस्टमार्टम कराया गया था, न ही उनके परिवार को मुआवजा दिया गया। यहां तक कि पहला मुकदमा भी घटना के सात साल बाद अक्टूबर 2013 में दर्ज किया गया।
सुधा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारियों को घेरने में कामयाब रही हैं। खुद सुधा ने भी मंगलवार को अपनी गिरफ्तारी को कोंडासावली मामले में सरकार की खुन्नस का नतीजा बताया है। ‘पत्रिका’ को जानकारी मिली है कि जल्द ही मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने वाली है। पुलिस ने कहा- नहीं हुई शिकायत, तो नहीं दर्ज किया मुकदमा ‘पत्रिका’ के पास मौजूद आयोग की जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार के एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी, जिनमें आइएएस और आइपीएस भी हैं, आयोग के निशाने पर हैं।
आयोग ने पुलिस अधिकारियों और सुकमा के जिला प्रशासन पर सख्त टिप्पणी करते हुए वहां 2007 से लेकर 2013 के बीच तैनात पटवारियों से लेकर कलक्टर और एसपी स्तर तक के तमाम अधिकारियों की सूची मांगी है। बता दें कि सुकमा में तैनात अधिकारियों ने आयोग को लिखित तौर पर कहा है कि चूंकि कोई भी आदिवासी शिकायत दर्ज करने नहीं आया, इसलिए कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया था। जानकारी मिली है कि बाद में जब इस मामले में मुकदमा दर्ज हुआ, तो भी जांच आगे नहीं बढ़ाई गई, न तो इसकी सूचना सम्बंधित गांव के लोगों को दी गई, न ही मृतकों के परिजनों को आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है।
लीपापोती की हो रही कोशिश
आयोग ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा है कि सात आदिवासियों की हत्या और उनके घर जलाने के इस मामले को पुलिस, राजस्व और अन्य विभाग के अधिकारी अच्छी तरह जानते थे, लेकिन उन्होंने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं। आयोग ने कहा कि सात साल बाद इस मामले में मुकदमा दर्ज करना बताता है कि छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारी और पुलिस के लोग इस अपराध में सहयोगी रहे हैं। आयोग कहता है कि तहसीलदार कोंटा से जांच अधिकारी की बातचीत में जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे साफ पता चलता है कि अधिकारी इस मामले में सच्चाई को सामने नहीं आने देना चाहते, बल्कि लीपापोती की कोशिशें कर रहे हैं।
आयोग ने इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार से जवाब तलब करते हुए कहा था कि लोकसेवकों द्वारा कोंडासावली, कमरगुडा और कर्रेपारा में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया गया है। पिछले वर्ष अगस्त में आयोग ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को सुधा भारद्वाज द्वारा नियुक्त किए गए दो प्रतिनिधियों को इस मामले में जांच के लिए सभी तरह का सहयोग देने को कहा था। इन प्रतिनिधियों ने कोंडासावली, कमरगुडा और कर्रेपारा जाकर अपनी जांच रिपोर्ट आयोग को सौंप दी है।
पीयूसीएल अधिवक्ता शिशिर दीक्षित ने कहा कि भीमा कोरेगांव केवल एक बहाना है, दरअसल सरकार डॉ. सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी के बहाने कोंडासावली जैसे गंभीर मामलों में पर्देदारी की कोशिशें कर रही है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा कि आयोग सम्बंधित पक्षकारों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर विचार कर रहा है।

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